Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 69
________________ मार्क्स सर्वोपरि क्रान्तिकारी थे। जीवन में उनका असली उद्देश्य किसी न किसी तरह पूंजीवादी समाज और उससे पैदा होने वाली राजकीय संस्थाओं के ध्वंस में योगदान करना था। संघर्ष करना उनका गुण था। उन्होंने ऐसा जोश, ऐसी लगन और सफलता के साथ संघर्ष किया जिसका मुकाबला नहीं है। उन्होंने महान् अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ की स्थापना की थी। यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी कि इस संगठन का संस्थापक चाहे उसने कुछ भी और न किया हो, उस पर उचित ही गर्व कर सकता था। मार्क्स व गाँधी दोनों ही प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति थे और मानव जाति के लिए क्रान्तिकारी महत्त्व के आन्दोलनों के सूत्रधार थे। दोनों ही शोषित जनता के लिए आशा की किरण थे। यदि मार्क्सवाद सम्पूर्ण विश्व के लिए आशा की किरण था तो हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बहुत से राष्ट्रों ने गाँधी के स्फूर्तिदायक नेतृत्व में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद की बेड़ियों को तोड़ फेंका। वस्तुतः गाँधीजी एशिया और अफ्रीका के पुनरुत्थानशील मानवोद्धारक आन्दोलनों के ज्योति प्रर्वतक थे। गाँधी तथा मार्क्सवादी दोनों ही अपने एतद् विषय विश्व दर्शन को पूंजीवादी समाज की संस्कृति और सभ्यता के लिए एकमात्र वांछित विकल्प के रूप में स्वीकार करते हैं। युगसुधारवादी प्रकृति से सम्पन्न होने के कारण इन दोनों दर्शनों में से किसी एक के चुनाव का कार्य आपाततः कठिन है। फिर भी हमें इन दोनों की तुलनात्मक दृष्टि को समझने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं का अध्ययन करना होगा ताकि यह स्पष्ट हो सके कि कहाँ-कहाँ इन दोनों के विचारों में समानता व असमानता है। सामाजिक उद्विकास - मार्क्स की सामाजिक उद्विकास की आर्थिक व्याख्या के समान गाँधी ने भी मानव इतिहास की अपनी विशिष्ट व्याख्या की है। गांधी के अनुसार संघर्ष स्वयं ही एक मनोवैज्ञानिक घटना है। मानव इतिहास की व्याख्या में इस मनोवैज्ञानिक घटना की उपेक्षा नहीं की जा सकती। गाँधी जी के अनुसार आर्थिक कारकों के अतिरिक्त भी अन्य कई कारक सामाजिक दशाओं के निर्धारण में योग देते हैं। इस दृष्टि से गाँधी जी मार्क्स की उस विचारधारा से सहमत प्रतीत नहीं होते जिससे उनके समानता सामाजिक उद्विकास का कारण केवल आर्थिक कारकों को माना है। मार्क्स ने इस भाँति अपने सिद्धान्त में मनुष्य की सर्वथा उपेक्षा कर दी है। गाँधीजी ने बताया है कि मार्क्स ने अपने सिद्धान्त में आर्थिक शक्तियों पर अत्यधिक केन्द्रित हो जाने के कारण अनार्थिक शक्तियों पर ध्यान ही नहीं दिया जबकि अन्य शक्तियां भी सामाजिक उद्विकास में महत्त्वपूर्ण होती हैं। इस दृष्टि से उसने सत्य, अहिंसा, नैतिक व सामाजिक नियन्त्रण के तत्वों को उत्तरदायी बताया है। 64 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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