Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 78
________________ आधारभूत परिवर्तन लाया जा सकता है। गाँधीवादी प्रयोग एक दूसरे के ही आधार का सुझाव देता है, जिस पर साधन की समस्या के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों ही समाधान किये जा सके। निरपेक्षवाद एवं सापेक्षवाद : -: गाँधी ने अपने साध्य और साधन के दृष्टिकोण को इस अध्यात्मवादी विश्वास पर आधारित किया है कि समस्त विश्व एक नैतिक विधि द्वारा अनुशासित होता है या ब्राह्मण्ड के अन्तकरण में एक नैतिक व्यवस्था का अधिष्ठान है । इस प्रकार के नीति शास्त्रीय निरपेक्षता वाद में विश्वास करते हैं और सत्य तथा अहिंसा को पूर्णत अनिवार्य मानते हैं। गाँधी प्राचीन भारतीय आदर्शवाद और नीति शास्त्रीय निरपेक्षवाद के आधुनिक प्रतिनिधि थे । गांधी के विपरीत मार्क्स सापेक्षवादी नीतिशास्त्री का अनुमोदन करते हैं। उनका विश्वास है कि किसी समाज की नीति शास्त्रीय व्यवस्था का निर्धारण, उनके धर्म और उनकी विधियों की भाँति समाज के आर्थिक ढांचे की संघटना और समाज विशेषों के उत्पादन की अवस्थाओं द्वारा होता है। मार्क्स की भाँति ही गाँधी जी इस मत को स्वीकार करते हैं कि नैतिक धारणाएँ और व्यवहार के मानदण्ड युगानुरूप बदलते हैं तथा प्रत्येक पीढ़ी को अपनी आधार शास्त्री व्यवस्था की रूप रेखा स्वयं बनानी पड़ती है। लेकिन मार्क्स की भाँति ही गाँधी के लिए भी आधार शास्त्रीय और नैतिक मूल्यों को सापेक्षता से सहमत हैं कि समाज की प्रगति के साथ ही उसकी आचार संहिता में भी उत्तरोत्तर पूर्णता आती है। गाँधीवादी सत्य, अहिंसा, पारस्परिक प्रेम, करुणा आत्मोत्सर्ग, विनम्रता अनासक्ति आदि सद्गुण, मार्क्सवादी दृष्टिकोण एवं अपनी निजी विशेषता के कारण सद्गुण नहीं है बल्कि वे आज तब तक सद्गुण रहते हैं या रह सकते हैं, जब तक सर्वहारा के उद्देश्य की सिद्धि करते हैं । नीति शास्त्रीय निरपेक्षतावाद का गाँधी दृष्टिकोण का आध्यात्मिक आदर्शवाद और अन्तः प्रेरणा की ही उपज नहीं है, बल्कि इस विश्वास पर भी आधारित है कि कुछ आचार-विषयक निरपेक्ष और अनुल्लेखनीय सिद्धान्त और नैतिक विधियाँ भी होती हैं, जिन्हें युग युगान्तर तक मान्यता प्राप्त रहती हैं। आत्मा एवं पदार्थ की सत्ता : गाँधी और मार्क्स के मध्य एक मूलभूत अन्तर जीवन और जगत के प्रति उनके भिन्न दृष्टिकोणों में निहित है। अन्य दूसरे अन्तर या तो गौण हैं या मुख्य अन्तर के परिणाम तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - जून, 2006 Jain Education International For Private & Personal Use Only 73 www.jainelibrary.org

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