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आध्यात्मिक आदर्शवाद और द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद__ मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में गाँधी को आंशिक सत्य दिखाई देता है। वे मार्क्स से इस सम्बन्ध से सहमत है कि जीवन एक सुसम्बद्ध और सुगठित इकाई है और जीवन के किसी भी तत्त्व को पार्थक्य के अन्तर्गत नहीं समझा जा सकता।
वह यह स्वीकार करते हैं कि जीवन निरन्तर द्रवणशीलता की स्थिति में होता है और गुणात्मक परिवर्तन धीरे-धीरे नहीं होते बल्कि छलांग के रूप में द्रुत और आकस्मिक होते हैं। फिर भी वे इतिहास पर द्वन्द्व नियम के लागू होने के सम्बन्ध में मार्क्स से सहमत नहीं हैं, । सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी कहा है, "आर्थिक परिस्थिति के महत्त्व पर जोर देना ठीक है लेकिन यह सुझाव कि वे इतिहास के एकदम निर्धारक है, ठीक नहीं।" मार्क्स के लिए क्रान्ति समाज के आर्थिक ढांचे में परिवर्तन का द्योतक है, जबकि गांधी के लिए सभी क्रान्तियाँ आध्यात्मिकता से बहुमूल्य होती है। जीवन मूल्यों में परिवर्तन के आरम्भ से ही समाज के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक ढांचे में भी परिवर्तन आरम्भ हो जाते हैं। गाँधीवादी दर्शन इस अर्थ में आदर्शवादी है, क्योंकि वह ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है और आत्मा को पदार्थ से श्रेष्ठ मानता है। वह मार्क्स के भौतिकवादी विश्व दर्शन को इस आधार पर अस्वीकार करता है कि मानवीय चेतना को चाहे उसका जो भी मूल हो, ठीक उसी ढंग से नहीं समझा जा सकता, जिस ढंग से पदार्थ का।
ईश्वर को अस्वीकार करके मार्क्सवाद आचार-शास्त्र के मूल पर ही कुठाराघात करता है। यदि ईश्वर ही न हो तो नैतिकता और आचार की दैवी उत्पत्ति के नहीं हो सकते। मार्क्सवादी इस तात्त्विक प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ है कि मनुष्य को क्यों नेक होना चाहिये अर्थात् उसे क्यों, प्रेम, सत्य, दया, निःस्वार्थता, आत्म-त्याग और आत्मोत्सर्ग के सद्गुणों से परिपूर्ण होना चाहिए।
इस प्रकार गाँधी सामाजिक पुनर्निर्माण के लिए मार्क्सवादी उत्पीड़न और बल प्रयोग को पद्धति के विरूद्ध व्यक्ति के हृदय परिवर्तन की पद्धति पर अधिक जोर देते हैं। इसलिए उन्होंने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या को अस्वीकार किया तथा उसके स्थान पर आधिभौतिक आदर्शवाद और इतिहास की आध्यात्मिक व्याख्या को अपनाया है। मानव-प्रकृति की धारणा :
मार्क्सवादी मानव प्रकृति को समाज की निर्मित और मनुष्य को अपने परिवेश की उपज मानते हैं। फलस्वरूप उसके कृत्य और विचार इसकी विधियों के अनुरूप
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल- जून, 2006 -
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