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परिवर्तन" की प्रक्रिया पर जोर दिया। जिसमें पूंजीपतियों में "दान-वृत्ति", "त्याग वृत्ति" तथा निरोध वृत्ति का संचार हो। इस प्रकार गाँधी के आर्थिक योजनाओं का वृहद् रूप सर्वोदय है जिसका अर्थ है सबका उदय और सबका विकास।
___मार्क्स के प्रति भी आज की शोषित जनता कृतज्ञ है, क्योंकि उन्होंने आधुनिक युग को शोषण मुक्त करने के लिए एक महान् जीवन दर्शन दिया है।' गाँधीवाद और मार्क्सवादी अधिकांशतः पूंजीवादी व्यवस्था और औद्योगिक सभ्यता की निष्ठर तथा अमानवीय सत्यात्मकता के विरोधी के रूप में अस्तित्व में आए। वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त मार्क्सवाद के बुनियादी सिद्धान्तों में से एक है। कार्ल मार्क्स एक दार्शनिक होने के अतिरिक्त अपने समय का जाना-माना अर्थशास्त्री भी था। उसने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का गंभीर अध्ययन किया और अपने "कैपिटल" नामक ग्रंथ में पूंजीवादी समाज की अर्थव्यवस्था का विस्तृत एवं सूक्ष्म अध्ययन प्रस्तुत किया।2 मार्क्सवादी दर्शन एक भौतिकवादी दर्शन है जो मानव-गति विधियों से लेकर प्रकृति के समग्र कार्यकलापों की परख और समझ के लिए द्वन्द्वात्मक पद्धति को आधार मानकर चलता है।
मार्क्स मानवता का सबसे बड़ा पुजारी होते हुए भी वे ख्याली घोड़े नहीं दौड़ाते, वे काल्पनिक जगत में स्वच्छंद विचरण करना पंसद नहीं करते। वे इस दुनिया की ठोस हकीकत को ही अपने अनुसंधान का आधार बनाते थे। उनकी शिक्षा है कि ऐतिहासिक विकास के क्रम को समझने की कुंजी समाज में है। मनुष्य सामाजिक है। संसार से बाहर उसका अस्तित्व नहीं है।
यह कहा जा सकता है कि जब-जब समाज तरक्की करता है, एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाता रहता है तब-तब विचार प्रणालियों की दिशा प्रधानत: उस समय के आर्थिक रचना के द्वारा निर्धारित होती रहती है। मार्क्स ने बतलाया कि किसी विशेष परिस्थिति में विशेष प्रकार के नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले महापुरुष स्वयं बदली हुई परिस्थितियों के परिणाम होते हैं और उनका सिद्धान्त भी समाज में इसलिए स्वीकार किया जाता है कि वह नयी परिस्थितियों के अनुकूल ही होता है।
मार्क्स का हृदय इतना विशाल और कोमल था कि औरों की अपेक्षा मानव समाज के साधारण से साधारण दुःख भी उसको ज्यादा प्रभावित करते थे। जिस प्रकार भूकम्प मापक भय पृथ्वी के सूक्ष्म से सूक्ष्म कल्पना का हिसाब रखता है उसी तरह मार्क्स मनुष्य के साधारण कष्ट का हिसाब रखते थे। समाज के इस अन्याय को वह सहन नहीं कर सकते थे कि एक वर्ग के लोग सम्पन्न और सुसंस्कृत हों और दूसरे गुलामों की तरह रातदिन मेहनत करने पर भी जिन्दगी की साधारण आवश्यकताओं से वंचित रह जाये।
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल- जून, 2006
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