Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 73
________________ गाँधी ने आधुनिक सभ्यता को एक दैत्य कहा है जो भारतीय संस्कृति से नैतिक और आध्यात्मिक आचार को ध्वस्त करने के लिए अपनी स्पार्शिकाएँ भारत की ओर बढ़ा रहा था। हिन्दू स्वराज्य में औद्योगिक सभ्यता और बढ़ते हुए प्रविधि संगतिकरण, यंत्रीकरण शहरीकरण व्यक्तित्व विहीन करण, परमानवीकरण और कर्मचारियीकरण पर प्रथम चोट की है। प्रकृति की दानशीलता के मध्य उन्हें सादगी के जीवन की तलाश थी। वे सोचते थे कि भारत के पुनर्जीवन संचरण का अर्थ उसके गाँवों को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न और राजनीतिक दृष्टि से जागरूक और मानसिक दृष्टि से सतर्क बनाना है। चर्खा अर्थात् स्वायत्तशासी ग्राम गणतंत्र और बुनियादी शिक्षा, गाँधीवादी अहिंसात्मक क्रान्ति के प्रतीक थे। यह आर्थिक समानता से युक्त एक ऐसा राज्य था, जिसकी विशेषता हर प्रकार के बल प्रयोग और शोषण की अनुपस्थिति थी। उन्होंने कहा था कि थोड़े से लोग विपुल सम्पदा से उन्मत्त हैं और सामान्य जन को पर्याप्त भोजन तक नहीं मिल पाता। वैयक्तिक परिवर्तन द्वारा सामाजिक रूपान्तरण - यदि मार्क्स पूंजी संचयन और उसके फलस्वरूप होने वाले शोषण के शत्र थे तो गाँधी भी किसी प्रकार के संचयन के कम विरोधी नहीं थे। लेकिन दोनों ने भिन्न बिन्दुओं पर जोर दिया है। गाँधी के लिए प्रयास बिन्दु व्यक्ति था। उनका विश्वास था कि यदि व्यक्ति अपने को परिवर्तित कर ले तो समाज स्वयं परिवर्तित हो जायेगा। उनके लिए पूंजी में किसी प्रकार की बुराई नहीं थी। वह पूंजी और श्रम के मध्य एक हार्दिक गठबन्धन का समर्थन करते हैं। ___ दूसरी ओर मार्क्स व्यक्ति में परिवर्तन लाने के लिए सामाजिक तथा आर्थिक ढाँचे में परिवर्तनार्थ अत्यधिक तल्लीन थे। व्यक्ति और सामाजिक व्यवस्था के मध्य अन्तर को स्वीकार करते हुए भी मार्क्सवाद व्यक्ति को सामाजिक सम्बन्धों की देन मानता है। इस सम्बन्ध में गाँधीवादी पद्धति, अधिक वैज्ञानिक और मनोविज्ञान जो मानव समाज की काया पलटने के लिए थे, पूर्व शर्त के रूप में हृदय परिवर्तन पर जोर देती है। इस मनोवैज्ञानिक व्यवहार के बिना कोई भी बाह्य उपकरण इच्छित परिणाम नहीं प्रदान कर सकेगा। यंत्र के रूप में मानव - ___औद्योगिक बेकारी या औद्योगिक आरक्षित के सिद्धान्त की स्थापना करने वाले मार्क्स की भांति गाँधी भी हर प्रकार के यंत्रीकरण के विरोध के लिए प्रेरित हुए, क्योंकि इसके द्वारा बेकार सुस्ती और बौद्धिक निष्क्रियता की सृष्टि हुई है। उनका विरोध यंत्र जैसी 68 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122