Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 30
________________ १६. अष्ट गुण - श्रेष्ठ ब्राह्मण के आठ गुण - सभी जीवों पर दया, क्षांति, शौच, अनायास, मंगल, अकृपणता और निस्पृह | अष्टदलकमल - सभी कमलों के श्रेष्ठ आठ दलों वाला कमल । १७. १८. चिकित्साशास्त्र के आठ अंग २०. २१. २२. कौमरभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरणतंत्र । - १९. सूर्य के अष्ट अर्ध्य - जल, दुग्ध, कुशाग्रभाग, घृत, दधि, लालकरवीर और चन्दन । अष्ट धात - स्वर्ण, रुप्य (चांदी) ताम्र, रंग, जस्ता, सीसा, लौह, पारा । अष्ट रत्न पुष्पराग, माणिक्य, इन्द्रनील, गोमेद, वैदूर्य, मौक्तिक, विद्रुम । साहित्यशास्त्र के आठ रस अष्ट रस श्रृंगार, हास, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स एवं अद्भुत । सन्दर्भ ग्रन्थ : 1. भागवत पुराण, 12.12, 49 2. उ. सू. ५७० 3. शब्दकल्पद्रुम 3, पृ. ५६४ 4. तिलोयपणत्ति १-९ 5. दशवैकालिक चूर्णि पृ. १५ 6. धवलापुराण १, पृ. ३१-३३ 7. भागवत पुराण ५.१४.३४ 8. शब्दकल्पद्रुम ३, पृ. ५०४ अमर कोश १.१.४.३-४ 9. 10. ब्रह्मवैवर्तपुराण गणपति खण्ड १ अ. ६ 11. बह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण जन्म खण्ड अध्याय ७०) मत्स्यसूक्तमहातन्त्र (पटल ४३ ) तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - जून, 2006 शल्य, शालाक्य, कायचिकित्सा, भूतविद्या, Jain Education International इस प्रकार उपर्युक्त उद्धरणों से अष्ट शब्द की महनीयता सिद्ध है, इसलिए अष्ट मंगल का ग्रहण हुआ । - 15. 16. 12. शब्दकल्प भाग-१, पृ. १४८ 13. वही, १, पृ. १४८ 14. वही, ९, पृ. २०४ ज्ञाता सूत्र १.७.१४३ औपपातिक सूत्र १२ अनसूया, 17. 18. 19. राजप्रश्नीय सूत्र ४९ 20. वही, २९१ 21. जीवाजीवाभिगम ३.२८९ 22. तिलोय पण्णत्ति ४-१९७९ 23. वही, ६४ वही, १२ महापुराण १३.९१, १५.४३७-४३, २२.१८५.२१०, पद्मपुराण २.१३७ 24. उत्तराध्ययन सूत्र ४.१८० For Private & Personal Use Only 25 www.jainelibrary.org

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