Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 29
________________ 3 o सब सर्वशक्तिमान, ऐश्वर्यवान एवं विभूतिमय हैं। कुछ अष्टसंख्यावाचक पदार्थों का नामोल्लेख इस प्रकार हैं१. योग के अष्ट अंग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धरणा, ध्यान, समाधि। अष्ट वसु (एक प्रकार के देव समूह) - आप, ध्रुव, सोम, घर या धव, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास। ३. अष्ट शिवमूर्ति - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा तथा यज्ञ। ४. अष्ट दिग्गज। अष्टसिद्धि - अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व और कामावसायिता। अष्ट ब्रह्मश्रुति। ७. अष्ट व्याकरण - इन्द्र, चन्द्र, काशकृत्स्न्य, आपिशली, शाकटायन आदि। अष्ट दिग्पाल - आठों दिशाओं के आठ दिशापाल - इन्द्र, अग्नि, यम, नैऋत, वरुण, मरुत, कुबेर और ईश। ९. अष्ट अहि १०. अष्ट कुलाद्रि - आठ कुलपर्वत -महेन्द्र, मलय, मन्दर, सह्य, शुक्तिमान ऋक्षपर्वत, विन्ध्य, परियात्र। . ११. अष्ट - ऋषभ, जीवाक, भेद, महाभेद, ऋद्धि, वृद्धि, काकोली, क्षीरकाकोली। १२. अष्टांग प्रणाम - शरीर के आठ अंगों द्वारा किया जाने वाला प्रणाम - दो जानु, ___ दो पैर, दो हाथ, वक्षस्थल, बुद्धि, शिर, वाणी और दृष्टि से किया जाने वाला प्रणाम। १३. अष्ट मैथुन - आठ प्रकार के संभोग रस - स्मरण, कीर्तन, क्रीड़ा-प्रेक्षण, गुह्यभाषण, संकल्प, अध्यवसाय और क्रियानिष्पत्ति। १४. अष्टाध्यायी - आठ अध्यायों वाला व्याकरण ग्रंथ। १५. अष्ठनृपकर्त्तव्य - राजा के आठ कर्त्तव्य - ग्रहण, विसर्जन, प्रैष, निषेध, ___ अर्थवचन, व्यवहार कार्य (न्याय), दण्डशुद्धि और सदा प्रजानुरक्त। 24 - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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