Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 65
________________ 1 मनीषियों ने अपने समकालीन विचारकों को बिना किसी टकराव के समझने का सफल प्रयत्न किया । दुराग्रह को तो उन्होंने जैसे अपने शब्दकोश से ही हटा दिया । अनेकान्त और स्याद्वाद जैसे सृजन धर्मी शब्दों को समझने का प्रयत्न जब हम करते हैं तब यह तथ्य बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है । अनेकान्त दृष्टि से वस्तु बहुआयामी है और स्याद्वाद के अनुसार उसका सम्पूर्ण कथन एक ही समय में संभव नहीं है। इस प्रकार श्रमण परम्परा के विविध आयामों का वर्णन करके भारतीय संस्कृति की हर विधा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। संदर्भ ग्रन्थ : 1. The Training and refinement of mind tastes and manners the cendition and bing thus trained and refined, the intellectual siele of cuttivation, the aequclinting ourselves with the best that has been knewn and ride in the world. 2. I. To a dorm, grace, decorate, II. To refine, Polish, III. To consecrate by repeating mantras, IV. To Pulify, V. To cultivate, educate, train, VI. Makeready, VII. To Cook food, VIII. To collect etc. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. पुरुषार्थ सिद्धयुपाय : आचार्य अमृतचन्द 07 11. शान्ताराम लाभचंद देव : डॉ. गुलाबराय - भारतीय संस्कृति की रूपरेखा पृ. 01 कल्याण - हिन्दु संस्कृति अंक । दे. ई. टाईलर, प्रिमिटिव कल्चर, भाग 01 दे. ए. एल क्रेबर, एन्थ्रापालांगी । एन्साइक्लोपीडिया आफ द सोशल सायन्सेज । डॉ. रवीन्द्र कुमार जैन - कविवर बनारसीदास : जीवनी और कृतित्त्व | अहिंसा तत्त्व दर्शन : मुनि श्री नथमल (आचार्य महाप्रज्ञ) 60 12. रूपिण: पुद्गलाः । तत्वार्थ सूत्र 5/4 आचार्य उमास्वामी । 13. वही, आचार्य उमास्वामी, 1/04 Jain Education International शोधार्थी - जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म तथा दर्शन विभाग जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूँ - 341 306 (राजस्थान) For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 131 www.jainelibrary.org

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