Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 47
________________ (1) (2) मित भाषण के लाभ : (1) (2) 42 किसी के पूछने पर भी एक बार या दो बार बोलना या प्रयोजनआवश्यकता होने पर बोलना मित- भाषण या अल्प भाषण है । यहाँ आवश्यकता और अनावश्यकता का विवेक करना जरूरी है । जो अनावश्यक बोलता है वह कम बोलने पर भी अल्पभाषी नहीं है और जो आवश्यकतावश अधिक बोलता है वह अधिक बोलने पर भी अल्पभाषी ही है। तात्पर्य यह है कि जो बात थोड़े शब्दों में ही समाप्त होने योग्य है उसे अनाश्यक लम्बा नहीं करना चाहिए । उच्च स्वर में न बोलना । इनमें पद्म लेश्या शुभ लेश्या में परिणत व्यक्ति के लक्षण इस प्रकार हैं- उसमें क्रोध, मान, माया और लोभ अत्यन्त अल्प होते हैं, प्रशान्त चित्त आत्मानुशासी, समाधियुक्त, उपधान करने वाला, अत्यल्प भाषी, उपशान्त जितेन्द्रिय होता है ।" इस प्रकार मितभाषण से भावधारा निर्मल होने से अनेक गुणों की वृद्धि होती है । समय और शक्ति का अपव्यय नहीं होता । पद्म लेश्या में परिणति :- जीव के चारों तरफ एक आभामंडल होता है। रंगों की प्रधानता के आधार पर यह छः प्रकार का होता है- कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल । इनमें प्रथम तीन शुभ तथा अन्तिम तीन अशुभ होती है। ये लेश्याएं जीव की भावधारा को प्रभावित करती हैं तथा जीव की शुद्धाशुद्ध भावधारा इन लेश्याओं को प्रभावित करती हैं अर्थात् जैसी लेश्या वैसी भावधारा तथा जैसी भावधारा वैसी लेश्या । ( 6 ) मर्मभेदी वचन नहीं बोलना " - ( णोयं वम्फेज्ज मम्मयं ) 'मर्म' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, जैसे- रहस्यमय, गुप्त बात, कटुक, पीड़ाकारक वचन। चूर्णिकार ने मर्म शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है- 'म्रियते येन तत् मर्म' - जिससे व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होता है, वह मर्म है ।° जैसे काने को काना, नंपुसक को नपुंसक, रोगी को रोगी और चोर को चोर कहना मर्मभेदी वचन है । यह सत्य होने पर भी मर्म को स्पर्श करता है तथा मानसिक उत्पीड़न उत्पन्न करता है । इसलिए यथार्थ बात भी वही वचनीय है जो अनवद्य, मृदु और संदेहरहित हो ।" इसी प्रकार, जन्म और कार्य सम्बन्धी वचन भी मर्मभेदी की श्रेणी में आते हैं। जैसे- 'तू जार का पुत्र है ' ' तू क्षुद्र है', 'तु दास है' आदि। इन तीनों ही तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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