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प्रकार के मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि वाणी की कठोरता लम्बे समय तक कष्टदायक होती है। कहा भी जाता है कि लोहे के काँटे अल्पकाल तक दुःखदायी होते हैं और वे भी शरीर से सरलता पूर्वक निकाले जा सकते हैं किन्तु दुर्वचन रूपी काँटे सहजतया नहीं निकाले जा सकने वाले और महा भयानक होते हैं।
किसी व्यक्ति के लिए लज्जाजनक, अपवादजनक या निन्दनीय आचरण सम्बन्धी गुप्त बात भी 'मर्म' कहलाती है। किसी व्यक्ति की दुराचरण सम्बन्धी कोई बात किसी भी माध्यम से यदि जानकारी में आ जाए तो उसे किसी दूसरे को कहना वर्जनीय है। 23 मर्मभेदी वचन के परिणाम
(1)
(2)
(3)
मर्मविद्ध व्यक्ति स्वयं आत्म-हत्या कर सकता है 24
वह मर्मकारी वचन कहने वाले की हत्या कर सकता है 125
मर्मविद्ध व्यक्ति मर्मकारी वचन कहने वाले को मार-पीट कर या बाँध कर कष्ट दे सकता है 26
(4) मर्मभेदी वचन कहने वाला शिक्षा प्राप्ति के अयोग्य होता है 7 (5)
ऐसे वचन से शत्रुता बढ़ती है । 28
(6)
मर्मभेदी वचन बोलने वाला मान-सम्मान नहीं पाता ।”
7. चुगली नहीं खाना- (पिट्ठिमंसं न खाएज्जा) परोक्ष में किसी का दोष कहना चुगली खाना कहलाता है। इससे मिले हुए मनों में दरार पड़ जाती है। यह इतना घृणास्पद कार्य है कि इसे 'पीठ का मांस खाने' के तुल्य माना जाता है ।
चुगली के परिणाम
(1) चुगलखोर को मोक्ष नहीं मिलता 1
(2) चुगलखोर लोक में पूज्य नहीं होता । 2
8. तिरस्कार नहीं करना – (ण कत्थई भास विहिंसएज्जा) किसी के द्वारा अज्ञानवश या प्रमादवश कोई भूल या स्खलना हो जाने पर उसका अपमान करना तिरस्कार कहा जाता है। हिंसा तीन तरह से होती हैं- मन से, वचन से और काया से । किसी का तिरस्कार करना भाषा की हिंसा है। निर्वाण प्राप्ति की अयोग्यता के चौदह लक्षण बतलाए गए हैं उनमें पांचवां है 'जो दूसरों की भूल देखकर उसका तिरस्कार करता है ।' तिरस्कार करना अविनीतता का लक्षण है, विनीत व्यक्ति किसी का तिरस्कार नहीं करता 34
तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - जून, 2006
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