Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ आगमों में वाचालता के अनेक दुष्परिणाम बताये हैं - (1) (2) (3) (4) वाचालता व्यक्ति को पतन की ओर ले जाती है। नीति शास्त्र में कहा भी गया है --- मौखर्यं लाघवकरं, मौनमुन्नतिकारकम् । मुखरौ नुपुरौ पादै, हारः कण्ठे विराजते ॥ वाचालता अवनति और मौन उन्नति करने वाला होता है। जैसे - वाचाल होने के कारण नुपुर पैरों में बांधा जाता है और मौन के कारण हार गले में विराजित होता है । वाचालता स्वयं के लिए तो अहितकर है ही, दूसरों के लिए भी अहितकर होती है । जैसे- अंट-संट बोलने वाला वाचाल अविनीति व्यक्ति कोमल स्वभाव वाले दूसरों को भी क्रोधित कर देता है । वाचाल व्यक्ति अबहुश्रुत कहलाता है । सड़े हुए कानों वाली कुतिया के समान सर्वत्र तिरस्कृत होता है, अविनीत माना जाता है। 10. (5) निर्वाण को प्राप्त नहीं होता ।" (6) पाप श्रमण कहलाता है।12 ( 4 ) निरर्थक नहीं बोलना 3 - ऐसी बातें जिनका कोई अर्थ ही न हो, नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि निरर्थक बोलने से शक्ति और समय का दुरुपयोग तो होता ही है, वक्ता की गम्भीरता और सामाजिक प्रतिष्ठा में भी कमी आती है । व्याख्या साहित्य में 15 इसका एक सुन्दर उदाहरण इस प्रकार मिलता है एष बन्ध्यासुतो याति, खपुष्पकृतशेखरः । मृग तृष्णाम्भसि स्नातः, शशश्रृंगधनुर्धरः ॥ 1 देखो यह बांझ का बेटा जा रहा है। यह आकाश कुसुमों का सेहरा बांधे हुए है इसने मृग तृष्णा में स्नान कर हाथ में खरगोश के सींग का धनुष ले रखा है। बांझ के पुत्र, आकाश कुसुम, मृगतृष्णा में जल तथा खरगोश के सींग का अस्तित्व ही नहीं होता। इस प्रकार के अनर्गल प्रलाप करने से श्रोता में भ्रम पैदा होता है। इसलिए इस प्रकार के अर्थहीन शब्दों का प्रयोग वर्जित किया गया है। 5. परिमित बोलना - (मियं भासे 15 ) परिमित का अर्थ है अल्प । इसके दो प्रकार हैं 16. तुलसी प्रज्ञा अप्रेल - जून, 2006 Jain Education International For Private & Personal Use Only 41 www.jainelibrary.org

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