Book Title: Tulsi Prajna 2006 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 25
________________ आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर भद्रासन का सुन्दर वर्णन मिलता है। राजा बल की पत्नी प्रभावती महास्वप्नों को देखकर राजा के पास जाती है और राजा से सम्मानित होकर नाना प्रकार के मणिरत्नों से खंचित श्रेष्ठ आसन (भद्रासन) पर बैठती है। नानामणिरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि। राजा बल प्रातःकाल उठकर पूर्व दिशा की ओर मुंहकर श्रेष्ठ आसन पर बैठता है। श्रेष्ठ आसन पर बैठकर वह नृपति अपने से उत्तरपूर्व भाग में आठ भद्रासनों का निर्माण करता है। वे भद्रासन उत्कृष्ट श्वेत वस्त्रों से आच्छादित थे तथा प्रयोजन सिद्धि हेतु मांगलिक उपचारों (कृत्यों) से युक्त थे। वह पुनः रानी प्रभावती के लिए भी नानामणि रत्नों से खचित, सुकोमल एवं सुन्दर बिछावन एवं आसनों का निर्माण करता है। स्वप्न पाठकों को बुलाकर राजा बल भद्रासनों पर बैठता है। राजा उद्रायण के दाहिने भाग में विद्यमान श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठकर पद्मावती तीर्थंकरों के अतिशय-छत्रादि को देखती है। ज्ञाताधर्मकथा में अनेक स्थलों पर भद्रासन का वर्णन है। धारिणी मांगलिक महास्वप्नों को देखकर राजा श्रेणिक के पास निवेदन करने लगती है। राजा श्रेणिक से सम्मानित होकर श्रेष्ठ भद्रासन पर बैठती है। वह भद्रासन नाना प्रकार के मणिरत्नों से खंतिच था 2 राजा श्रेणिक भी भगवती सूत्र के राजा बल के समान उत्तर पूर्व भाग में आठ भद्रासनों का निर्माण कराता है। वे भद्रासन श्वेतवस्त्रों से आच्छादित एवं सिद्धिदायक मांगलिक उपचारों से युक्त थे अष्टमंगलों में भद्रासन ज्ञानाधर्मकथा में ही एक स्थल पर अष्टमांगलिक द्रव्यों में भद्रासन का उल्लेख है। सोवत्थिय-सिरिवच्छ-नंदियावत्त-वद्धमाणक-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पणया 4 प्रश्नव्याकरण में एक स्थल पर भद्रासन का उल्लेख है। औपपातिक में निर्दिष्ट श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के आगे अष्टमंगलों में भद्रासन का निर्देश है। यहां अष्टमंगलों का सुन्दर चित्रण है। उसके अनेक गुणों का निर्देश है। वे अष्टमंगल सभी प्रकार के श्रेष्ठ रत्नों के बने हुए सुन्दर, स्वच्छ, स्पर्शसुखदायक, रजरहित, निर्मल, निरूपंक, उद्योतयुक्त एवं रमणीय थे औपपातिक सूत्र में भी अष्टमांगलिक पदार्थों का निर्देश है 7 राजप्रश्नीय में औपपातिक की तरह भद्रासन के साथ अष्टमांगलिक द्रव्यों का स्वरूप वर्णित हैं। वहीं पर सूर्याभदेव भद्रासन की विकुर्वणा करता है। सिंहासन के चारों तरफ चार-चार यानि सोलह भद्रासनों की रचना करता है। सूर्याभदेव स्व विरचित यानविमान में भी अष्टगंमल का निर्माण करता है। वहीं पर विभिन्न प्रकार के महलों में अनेक प्रकार के आसनों के साथ रत्नमय भद्रासन 20 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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