Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 21
________________ दर्शन के इतिहास में वह दिन अति महत्त्वपूर्ण रहा है जिस दिन अक्रियावाद का सिद्धान्त स्थापित हआ। इस वाद की स्थापना से पूर्व अक्रिया का अर्थ था विश्राम या कार्यनिवृत्ति । किन्तु चित्तवृत्तिनिरोध, मौन, कायोत्सर्ग इत्यादि अर्थ बाद में जुड़े हैं जो सिद्धि के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है अक्रियावाद को समझने के बाद ही मोक्ष का स्वरूप निश्चित हुआ है । गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! जीव सक्रिय है या अक्रिय? भगवान् ने कहा-गौतम ! जीव सक्रिय भी है, अक्रिय भी। जीव दो प्रकार के हैंसिद्ध और संसारी। मुक्त जीव अक्रिय होते हैं। संसारी जीव सक्रिय । सहज रूप से जीव अक्रियामय है। क्रिया आत्मा की विभाव पर्याय है। क्रिया वीर्य से पैदा होती है। योग्यता रूप वीर्य मुक्त जीवों में भी होता है किन्तु शरीर के अभाव में उसका प्रस्फुटन नहीं होता। वह लब्धि वीर्य ही कहलाता है। शरीर के संयोग से लब्धिवीर्य सक्रिय होकर करणवीर्य कहलाता है। आत्मवादी का चरम लक्ष्य मुक्ति है। मोक्ष का अर्थ है-शरीर-मुक्ति, बंधन-मुक्ति और क्रिया-मुक्ति। ___ अक्रियावाद से क्रिया के शोधन की प्रवृत्ति बढ़ी। कर्म सहित मुक्त नहीं हो सकते और बिना कर्म के जीवन असम्भव है। ____ इस विचार संघर्ष से क्रिया के शोधन की दृष्टि मिली। अक्रियात्मक साध्य (मोक्ष) अक्रिया से ही प्राप्य है। आत्मा की अभिमुखता अक्रिया की ओर हो जाती है। इस अभिमुखता में कर्म रहता है पर अक्रिया से परिष्कृत हो जाता है। अप्रमत्त का कर्म पंडितवीर्य कहलाता है। पंडितवीर्य असत् क्रिया रहित होता है। इसलिये प्रवृत्ति रूप होते हुए भी मोक्ष का साधन है। साधना के पहले चरण में ही सारी क्रियाओं का त्याग शक्य नहीं है। मुमुक्षु भी साधना की पूर्वभूमिका में क्रियाप्रवृत्त रहता है किन्तु उसका लक्ष्य अक्रिया ही होता है। सन्दर्भ: आयारो 1/5 से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई। सूत्रकृतांग 1/6/27 सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा 111 अत्थित्ति किरियावादी, वयंति णत्थि त्ति अकिरियावादी य। अण्णाणी अण्णाणं, विणइत्ता वेणइयवादी। सूत्रकृतांग गा. 30, 31, 32 स्थानांग 4/4/345 __ भगवती 30 श. 1 उ.सू. 824 7. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा 112: असियसयं किरियाणं अक्किरियाणं च होति चुलसीति । अण्णाणिय सत्तद्वी, वेणइयाणं च बत्तीसा। 8. तत्वार्थवार्तिक 8/1 भाग 2 पृष्ठ 562 9. सूत्रकृतांग नियुक्ति, गा. 111 ... णत्थि त्ति अकिरियावादी य। 16 MININNINITINWwww TITI V तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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