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पालि प्रधानतया मध्य प्रदेश में विकसित साहित्यिक भाषा है और उसका सम्बन्ध प्राचीन शौरसैनी से होगा, किन्तु मध्य प्रदेश में जो अशोक के लेख हैं, उनकी भाषा पूर्व की ही यानी मगध की ही है। मध्य प्रदेश में अशोक की राजभाषा समझना दुस्साध्य न होने से वहाँ के लेखों पर स्थानिक प्रभाव पड़ने की कोई आवश्यकता न थी।
अशोक के पूर्व लेखों के साथ केवल पूर्व के ही नहीं, अपितु मगध के पश्चिम में लिखे गये कुछ लेखों का भी आकलन करना आवश्यक होगा । जैसा ऊपर कहा गया है, जहाँ मगध की राजभाषा दुर्बोध न थी, वहाँ के शिलालेख प्रायः पूर्व की ही शैली में लिखे गये । खास तौर से मध्य प्रदेश में जो लेख मिलते हैं, उनसे यह बात स्पष्ट होती है। वहाँ के राज्याधिकारी अशोक की राजभाषा से सुपरिचित होंगे, इससे मध्य प्रदेश की छाया उन लेखों पर विशेष नहीं मालूम होती और इससे मध्य प्रदेश की बोली के उदाहरण अशोक के लेख में नहीं उपलब्ध होते। यही कारण है कि पूर्व में जो ध्वनिभेद सार्वाधिक हैं, वे कालसी, टोपरा में वैकल्पिक |ऐसी दो-एक विशेषताएं अवश्य हैं, पूर्व में 'र' का 'ल' 'ए' का 'ओ' | शब्दान्तर्गत जैसे कलेति (करोति) सार्वाधिक हैं, कालसी में ये वैकल्पिक हैं।
____ पश्चिमोत्तर के लेखों को छोड़कर सब जगह 'श, ष, स' का 'स' होता है। तदनुसार इस विभाग में भी 'स' ही मिलता है। कालसी में परिस्थिति कुछ अजीब है, वहाँ 'श, ष' का भी प्रयोग मिलता है। प्रथम नौ लेखों में कालसी में दो, एक अपवाद के अतिरिक्त गिरनार की तरह 'श, ष' की जगह 'स' मिलता है। तदनन्तर अनेक स्थानों पर 'श, ष' का प्रयोग भी शुरू होता है। यह प्रयोग इतनी अनियन्त्रित रीति से होता है कि मूल संस्कृत के 'श, ष, स' से भी उसका कोई सम्बन्ध नहीं प्रतीत होता । जैन शास्त्र के विचक्षण और विलक्षण अध्येता श्री प्रबोध बेचरदास पण्डित की 'प्राकृतभाषा' शीर्षक मुद्रित व्याख्यान-पुस्तिका से उपर्युक्त प्रसंग के कुछ उद्धरण तुलना की दृष्टि से यहाँ प्रस्तुत हैं
मूर्धन्य ष : प्रियदषा, यषो, अपपलाषवे (अपपरिस्तवः)। उषुटेन, उषटेन, उषता, हेडिषे (ईदृशः)/धम्मषंविभागे, धंमषंबंधे। षम्या परिपति (सम्यक् प्रतिपत्तिः), षुषुषा, दाशमतकषि, अठवषाभिसितषा (-स्य), पियष (-स्य) । पानषतषहषे (प्राणशतसहस्ते), शतसहस्रमात्रः)। अनुषये (अनुशयः), धंमानुशथि (धर्मानुशिष्टि-), षमचलियं । (समचर्चा) इत्यादि । तालव्य श : पशवति (प्रसूते), शवपाशंडानं (सर्वपाषण्डानां)। शालवढि (सारवृद्धिः), शिया (स्यात्)। पकलनशि (प्रकरणे) इत्यादि।
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 ANTIY
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