Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 118
________________ 'नाया-धम्म कहाओ' में भी इन चार कारणों का उल्लेख किया है (देखे-1/90) उपशान्त मोहनीय राजर्षि नमि के जाति-स्मृति ज्ञान का निमित्त उपशान्त मोह था। विशेष जानकारी के लिये उत्तरज्झयणाणिं का नवमा नमिपव्वज्जा अध्ययन पठनीय है। अध्यवसान-शुद्धि-काकतालीय न्याय के अनुसार बहुत बार ऐसा भी होता है कि ज्ञान को आवृत्त करने वाले कर्म परमाणुओं की अवधि पूर्ण होने वाली है अथवा कर्म पुद्गल उदयावलिका में प्रविष्ट होते हैं, उस समय एक ऐसा झटका लगता है, संतदर्शन अथवा संभाषण के तत्क्षण उसे अतीत का साक्षात्कार हो जाता है। पूर्वजन्म के स्मरण की एक विशेष पद्धति है। कोई व्यक्ति पूर्व परिचित व्यक्ति को देखता है, तत्काल चैतसिक संस्कारों में हलचल होती है, वह सोचता है कि इस प्रकार का आकार मैंने कहीं देखा है? ईहा, अपोह, मार्गणा और अन्वेषणा के द्वारा चिन्तन आगे बढ़ता है। बलभद्र के प्रिय मृगापुत्र को सुसंयत, संयमित, नियमित, शीलसमृद्ध और ज्ञान आदि विशिष्ट गुणों से अन्वित मुनि के दर्शन से तथा अध्यवसायों की पवित्रता होने से जाति स्मृति ज्ञान उत्पन्न हुआ। इसी प्रकार भृगु पुरोहित के दोनों पुत्रों को भी संतों की सन्तता दर्शन से संज्ञी ज्ञान हुआ। इहा-अपोह-मार्गणा-गवेषणा... ___ राजकुमारमेघ मुनिमेघ बन गया। मुनि जीवन की प्रथम रात्रि मेघ मुनि को सोने के लिये दरवाजे के बीच में स्थान मिला। रातभर साधुओं के गमनागमन से वह नींद नहीं ले सका। अंधेरे में साधुओं के पांवों से मेघ का शरीर बार-बार स्पर्श होता रहा। एक ओर राजकुमार का कोमल शरीर, दूसरी ओर कठोर धरती पर शयन, साधुओं की आपाधापी से निद्रा में विक्षेप । मेघमुनि अधीर हो गये। सूर्योदय के साथ ही घर जाने का निर्णय ले लिया। अपने निर्णय की क्रियान्विति के लिये भगवान के उपपात में पहुंचे । भगवान ने उसको सम्बोधित कर उसका मन उसके सामने खोल-कर रख दिया। उसे पूर्वजन्म की स्मृति कराई। पीछे मुड़जुड़ जोग स्यूं, कर अतीत ने याद । तो सारी कटुता कटै, मिटै वितण्डावाद । लेश्या अध्यवसाय योगशुभ, ईहापोह-गवेषण । करता अन्तर यात्रा पायो, जाति स्मृति सम्प्रेषण | देख सुमेरूप्रभ मेरूप्रभ निजभव विस्मय भय हो । जातिस्मृति के आवारक कर्मों का क्षयोपशम होने से जाति स्मृति ज्ञान समुत्पन्न हआ। मेघ को अपना पिछला हाथी का भव साफ-साफ दिखाई दिया। तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001AN WILLY 113 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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