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जायमाणस्स जं दुक्खं, मरमाणस्स वा पुणो।
तेण दुक्खेण संमूढो, जाइंसरइ न अप्पणो॥ जन्म और मृत्यु के समय प्राणी को जो दुःख होता है, उस दुःख से संमूढ़ होने के कारण व्यक्ति को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं हो पाती। मूर्छा में स्मृति लुप्त प्रायः हो जाती है, .इसीलिये जन्मान्तर का बोध नहीं रहता तथा विशिष्ट निमित्तकों के अभाव में भी पूर्वजन्म के विद्यमान संस्कारों को नहीं उभारा जा सकता। अन्यथा हम पूर्वजन्म में घटित समस्त घटनावलियों को भली-भांति देख सकते हैं, जान सकते हैं।
__ परामनोविज्ञान की जितनी भी घटनाएं हैं-वे वैयक्तिक होती हैं, अतः कोई नियामकता नहीं बनती है। फिर भी इसका अपना मूल्य है। पशुओं तथा पेड़ पौधों में परासामान्य मनोविज्ञान का अस्तित्व पाया जाता है।
अमेरिका में एक संस्था का निर्माण किया गया है वहां परासामान्य का परीक्षण किया जाता है। उसमें एक पूर्वजन्म की स्मृति है, हजारों घटनाएं प्रमाणित सिद्ध हुई हैं।
जहां पूर्वजन्म-पुनर्जन्म का अस्तित्व भी स्वीकार नहीं किया गया है वहां भी ऐसी घटनाएं घटित हुई और वह सत्य सिद्ध हुई।
थाईलैण्ड में भी ध्यान के माध्यम से पुनर्जन्म की स्मृति करवाई जाती हैइन सूत्रों से भी पूर्वजन्म की स्मृति स्वतःसिद्ध है(1) स्वभाव की विलक्षणता-बिना प्रशिक्षण प्राप्त क्षमताएं। (2) कलात्मक ज्ञान-बिना प्रशिक्षण विविध कलाओं का ज्ञान। (3) भाषात्मक ज्ञान-बिना प्रशिक्षण विविध भाषाओं का ज्ञान । (4) अतीन्द्रिय बोध-इन्द्रियों की सहायता के बिना पदार्थों का सहज बोध । जातिस्मृति ज्ञान वास्तव में विस्मृति से स्मृति में आने का एक सबल उपक्रम है।
इस ओर विशेष अनुसंधान की अपेक्षा है। सतत अनुसंधान से कई अतीन्द्रिय तथ्य सामने आने की सम्भावना है।
डॉ. जरड प्याटलर ने लिखा है-योग विधियों के द्वारा आप ज्ञान के क्षेत्र में एक वास्तविक नई राह निकालने में सफल हो सकते हैं।
आयु परावर्तन एजरिग्रेशन की पद्धति का प्रयोग आज कल मानस रोगों के लिये अमरीकी चिकित्सा विधि में खुलकर हो रहा है। यह जानने के लिये कि रोग की जड़ में कोई मानसिक ग्रंथि कारणभूत है या नहीं? रोगी को सम्मोहन द्वारा गहरी नींद जैसी अवस्था में सुला दिया जाता है और बाद में उसके अतीत की स्मृतियां उबुद्ध की जाती है। इस अवस्था में वर्तमान ही नहीं, पिछले जन्मों की भूली हई यादें भी ताजी हो जाती हैं। इस प्रयोग ने
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LILAILY
MITITITII तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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