Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 120
________________ (8) देव पूजा-अर्हत् प्रतिमा को आत्मा में प्रतिष्ठित करने से भी जातिस्मृति ज्ञान हो जाता है। (9) आत्म-शोधन-आत्मचिन्तन करते-करते भी अतीत का साक्षात्कार होजाता है। मनु स्मृति में जातिस्मृति के कई कारण निर्दिष्ट हैं वेदाभ्यासेन सततं, शौचेन तपसैव च । ___ अद्रोहेण च भूतानां, जाति स्मरति पौर्विकीम् ॥ 1. वेदाभ्यास 2. पवित्रता 3. तपस्या और 4. मंगल मैत्री भविष्य पुराण में जाति स्मृति की उपलब्धि के लिये जातिस्मृति व्रत का उल्लेख है। महाभारत में जातिस्मरण तीर्थ का वर्णन है। पिछले जीवन की साक्षात अनुभूति के लिये जातिस्मरण हृद में स्नान करना बतलाया है। जातिस्मर हृदे स्नात्वा, भवेज्जाति स्मरोनरः।। सेत माहात्म्य में लिखा है--शिव की साधना से वारन को जन्मान्तर का ज्ञान हो गया था। इसीलिये उन्होंने कहा तपस्य आराध्य गिरीशं, तत्प्रसादात्पुरातनम्। अतीतं भावी विज्ञानमस्ति जन्मान्तरोपि च || शिव की आराधना एवं तपस्या से मुझे अतीत अनागत का ज्ञान हो गया। भागवत स्कन्ध में लिखा है राजानृग ने श्रीकृष्ण से कहा—मुझे गिरगिट के जन्म में भी जन्मान्तर की याद थी। इसका कारण आपके दर्शन की तीव्र आकांक्षा थी। योगसूत्र में जाति-स्मृति का विस्तृत विवेचन है। विशेष ज्ञाताओं के रूप में तीन व्यक्तियों के नाम हैं (1) ऋषिजैगषिव्य को सम्पूर्ण भावों का ज्ञान था। . (2) ऋषि कौशिक को सात पूर्वजों के अनेक जन्मों की याद थी। (3) सुमति पुत्र को लाख पूर्व भवों का ज्ञान था। श्रीमदायचन्द ने अपनी जीवनी में लिखा है कि सात वर्ष की आयु में मृत व्यक्ति की अन्तिम क्रिया देख मेरे मन में गहरी ऊहापोह हुई और जातिस्मरण का ज्ञान पैदा हो गया। आज भी ऐसे अनेक प्रयोग किये जाते हैं, करवाये जाते हैं जिससे व्यक्ति पूर्वाजित संस्कारों को दोहरा देता है। आटो-सजेशन, आटो रिलेक्शेशन एवं अनेलिसिस आदि प्रयोगों से अतीत में पहंचा दिया जाता है। सबको पूर्वजन्म की स्मृति नहीं होती, इसका कारण तेंदुलवेयालिय प्रकीर्णक में स्पष्ट निर्दिष्ट है : तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 NITIONSITY INNINNNNNNY 115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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