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संगोष्ठी एवं कार्यशाला
आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य एवं चिन्तन
(10-12 मई, 2001)
आचार्य महाप्रज्ञ एक ख्यातनामा चिंतक, दार्शनिक,अध्यात्म योगी एवं लेखक हैं। आपके बहुमुखी चिन्तन ने समाज के हर क्षेत्र की समस्याओं का संस्पर्श कर समाधान के सूत्र दिये हैं। आपका चिन्तन आदर्श और व्यवहार का सुन्दर समन्वय है, जिसे संबंधित क्षेत्र में क्रियान्वित कर समस्याओं से संत्रस्त समाज एवं विश्व को त्राण मिल सकता है। ऐसे चिन्तन को जनोपयोगी एवं सर्वव्यापक करने की दृष्टि से अहिंसा एवं शांति अध्ययन विभाग ने उनके साहित्य एवं चिन्तन पर 10-12 मई, 2001 को श्री डूंगरगढ़ में एक त्रिदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया।
संगोष्ठी में महावीर का अर्थशास्त्र, आचार्य महाप्रज्ञ का पर्यावरणीय चिन्तन, आगम सम्पादन एवं साहित्य पर आधारित विशेष शोध पत्रों का वाचन हआ | संगोष्ठी में कम्पट्रोलर एवं ऑडीटर जनरल के मुख्य सचिव प्रो. एम.सी.सिंगी, पूर्व प्राचार्य एवं अर्थशास्त्री, प्रो. एस.सी. जैन, महाविद्यालय समायोजक प्रो. नलिन शास्त्री, शिमला विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र मिश्र, प्रसिद्ध चिन्तक एवं दार्शनिक नन्दकिशोर आचार्य, प्रो. दयानन्द भार्गव, सहायक निदेशक, गांधी संग्रहालय के डॉ. ए.डी. मिश्र, बीकानेर के परिमण्डल अधिकारी डॉ. ए.आर. नियाजी, प्रसिद्ध पर्यावरणकर्मी एवं स्वतंत्र पत्रकार शुभू पटवा सहित संस्थान एवं देश के 19 संभागियों ने भाग लिया।
वर्तमान चिन्तन की सीमाओं को उजागर करते हुए महावीर के अर्थशास्त्र पर चिन्तन हुआ। चिन्तन में यह विचार उभर कर आया कि महावीर बढ़ते उत्पादन और तकनीकी विकास और आधुनिकीकरण के विरोधी नहीं थे। उन्होंने आर्थिक समस्याओं की जड़ें त्रुटिपूर्ण उत्प्रेरण एवं अभिप्रेरणाओं के प्रदर्शन में बतलाई है। वे इस ओर भी सजग थे कि ये स्थितियां आर्थिक चिन्तकों की संकीर्ण दृष्टि के कारण हैं जो अल्पकालिक चिन्तन करते हैं। महावीर ने पुनर्जन्म की अवधारणा द्वारा एक व्यक्ति को सुदीर्घ काल तक जोड़ा जिससे वह पोषणक्षम विकास के लिए अधिक उत्तरदायी हो सके। क्योंकि संसाधनों का दोहन उसके स्वयं की भविष्य की प्राप्तियों को सीमित करेगा। महावीर की इस दृष्टि ने व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों को सामंजस्यपूर्ण किया। साथ ही महावीर ने भौतिक उपभोग पर भी स्वैच्छिक सीमाकंन किया। इससे संसाधन स्वतः उनके पास पहुंचेंगे जिन्हें इनकी आवश्यकता है।
120 AINITION
NI TIN तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112
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