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सेमीनार एवं संगोष्ठी
राष्ट्रीय परिसंवाद अनेकान्त सिद्धान्त और व्यवहार (1-3 अप्रैल, 2001)
विश्ववंद्य तीर्थंकर महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव के पावन प्रसंग पर जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं, (राजस्थान) द्वारा अनुशास्ता पूज्य आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के प्रेरक सान्निध्य में अनेकान्त : सिद्धान्त और व्यवहार इस विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन गंगाशहर, बीकानेर (राज.) में 1-3 अप्रैल, 2001 में किया गया। इस संगोष्ठी में 6 शैक्षणिक-सत्र आयोजित हुए जिनकी अध्यक्षता क्रमशः प्रो. भोपालचन्द लोढ़ा, कुलपति, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, प्रो. अरुण के मुखर्जी, कलकत्ता, प्रो. महावीरराज गेलड़ा, जयपुर, प्रो. तुषार के. सरकार, कलकत्ता, तथा प्रो. दयानन्द भार्गव, लाडनूं ने की। विभिन्न सत्रों में देश के लब्धप्रतिष्टित मनीषियों ने शोध-पत्रों का वाचन किया जिसका विवरण इस प्रकार हैक्र.सं. प्रतिभागी
शोध आलेख 1. प्रो. तुषार के. सरकार, कलकत्ता अनेकान्त, स्याद्वाद, नयवाद 2. श्रीमती एस.रघुनाथन, दिल्ली । Fatless cream and decaffeinated
coffee-A layman view of Anekant डॉ. नेमिचन्द जैन, इन्दौर The Applied Aspect of Anekantwad 4. प्रो. सागरमल जैन, शाजापुर भारतीय दार्शनिक चिन्तन में निहित अनेकान्त
के तत्व साध्वी वर्द्धमान श्री
व्यवहार में अनेकान्त डॉ. के.सी. जैन
अनेकान्त का व्यावहारिक पक्ष 7. डॉ. अशोक कुमार जैन, लाडनूं सम्यक् व्यवहार में अनेकान्त दृष्टि की
उपयोगिताः सूत्रकृतांग के सन्दर्भ में 8. प्रो. महावीरराज गेलड़ा, जयपुर Anekant : A Jain contribution to
Scholartic Methodology 9. श्रीमती रंजना जैन, दिल्ली अनेकान्त का सामाजिक पक्ष 10. साध्वी आरोग्यश्रीजी
'शान्त सहवास में अनेकान्त की भूमिका' 11. डॉ. हेमलता बोलिया, उदयपुर वर्तमान समस्याओं के निराकरणार्थ अनेकान्त
की उपयोगिता
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TITI तुलसी प्रज्ञा अंक 111-172
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