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4. प्रतिपक्ष भावना का प्रयोग करें। यह शरीर हमेशा तो इसी रूप में रहने वाला नहीं है। नाशवान है। यदि यह शरीर अमर होता तब तो काम भोगों में महान् श्रद्धा की जा सकती थी। ऋण करके भी घी पीने की बात समझ में आ सकती थी। लेकिन किसी भी क्षण समाप्त हो जाने वाले अस्थिर और अनिश्चित इस क्षणभंगुर शरीर का भरोसा क्या? काम-आसेवन की दिशा में जो प्रवृत्त होता है उसकी उसी क्षण या जिस किसी क्षण में वय आदि किसी मानदण्ड के बिना भी मृत्यु हो सकती है। इसीलिए प्रतिपक्ष भाव के द्वारा काम को अभिभूत करें। निर्वेद -शरीर विरक्ति से संयम को पुष्ट करें।
जितनी शरीर से आसक्ति होती है उतनी ही जन्म मरण, रोग आदि की वेदना अनुभूत होती है। व्यक्ति जो कार्य करता है- उसकी वृत्ति/संस्कार मन में अंकित होता है। वह संस्कार बार-बार प्रकट होता है, यह अनुवृत्ति का सिद्धान्त है। भयावह परिणामों की अनुप्रेक्षा के बाद काम-मुक्ति का हृदय से स्पर्श करें, धारणा कर वास्तविकता में उतार लें 21 प्रतिपक्ष भाव द्वारा चैतसिक संस्कारों को भी समाप्त किया जा सकता है। इस विश्वास के साथ यदि प्रयोग किया जाए तो संयम/नियमन/परिवर्तन शमन का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जायेगा।
5. आहार संयम करें। काम-वासना के उदय का संबंध वीर्य उपचय से है। वीर्य उपचय का संबंध आहार से हैं। इसीलिए निर्बल भोजन या ऊनोदरी का बहुत महत्व है।22 रक्त व मांस की अल्पता से उत्तेजना को निमित्त नहीं मिलेगा। मुनि का एक विशेषण आता है-कृश भुजा, रक्त मांस की अल्पता। आहार संयम से आवेग संयमन की साधना सरल हो जाती है। विज्ञान की विवशता
विद्युत एवं केमिकल्स के माध्यम से संवेदनों को बदलने का दावा विज्ञान करता है। लेकिन संयम से होने वाले ऊर्जा के ऊर्ध्वारोहण का कोई विकल्प उनके पास नहीं। तंत्र एवं वनौषधि साध्य उपाय भी हिंसा से रहित नहीं और वहां भी ऊर्जा के ऊर्वीकरण का कोई अवकाश नहीं। इसीलिए ध्यान व तप से किया जाने वाला कामोपचार काम चिकित्सा ही काम-निर्मूलन का हेतु है। ध्यान एवं तप ही ऊर्जा का अक्षय भण्डार है। आरोहण का स्त्रोत
प्रेक्षाध्यान के अन्तर्गत चैतन्य केन्द्र के विशेषज्ञों द्वारा यह मान्य है कि काम संज्ञा शक्ति केन्द्र को, आहार-संज्ञा स्वास्थ्य केन्द्र को व यशोभिलाषा तैजस् केन्द्र को सक्रिय करती है। इस स्थिति में आनन्द केन्द्र निष्क्रिय हो जाता है। फलतः आत्महित की प्रज्ञा का जागरण नहीं हो पाता। इसीलिए ब्रह्मचर्य, आहारं संयम व यशोभिलाषा से मुक्ति के लिए उपाय बताया है। आनन्द केन्द्र पर ध्यान करें। आनन्द केन्द्र की सक्रियता से ये तीनों संज्ञाएं विनष्ट हो जाती हैं।
चित्त परिष्कार व आदतों के परिवर्तन के लिए एक ओर आलंबन है-अप्रमाद केन्द्र
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