Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 106
________________ संतुलन का सूत्र अधिक से अधिक हड़प जाने की विद्रूपता के समक्ष आचार्यश्री के चिन्तन की अपरिग्रही दृष्टि संरक्षण की दिशा में सकारात्मक रुख दिखाती है । स्वकेन्द्रित मनोवेगों से संचालित होना और 'यह सिर्फ मेरा है' का भाव ही तो परिग्रह की रचना करता है और स्वार्थ का यह दृष्टिकोण उपलब्ध संसाधनों का दुरुपयोग कराता है। अतः स्वतः सीमांक - उपभोग का सीमांकन, परिग्रह का सीमांकन संतुलन की बुनियाद है। पर्यावरण संरक्षण के लिये संतुलन के महत्त्व की पहचान करते हुए आचार्यश्री ने कहा— "सृष्टि में संतुलन है। कभी-कभी लगता है, यह प्राणी दुःख देने वाला है। इस प्रतीति के आधार पर कुछ लोग उसे समाप्त भी कर देते हैं। चिड़ियों को अर्थहीन मान कर उन्हें समाप्त कर दिया गया है। फलतः खेती की उपज कम हो गयी है। हर जीव-जन्तु का सृष्टि में होने का अर्थ है । यह अर्थ भी सृष्टि सन्तुलन की व्याख्या करता है। सार्थक में व्यर्थ की कल्पना ही सृष्टि को बिगाड़ रही है। हम व्यर्थ की अवधारणा से मुक्त होकर सार्थकता को समझने का प्रयत्न करें, सृष्टि संतुलन अपने आप हो जाएगा ।"11 आचार्य महाप्रज्ञ ने उदात्त जीवन मूल्यों के माध्यम से एक परिष्कृत और शालीन जीवन-शैली को आख्यायित किया है जो कहीं से भी, किसी के लिये भी आक्रामक नहीं है, सबको सबके साथ ले चलने की जुगत रचती है और सहज, अनायास पा लेती है अपना मुकाम, जिसका नाम है पर्यावरण संरक्षण । सन्दर्भ : 1. लिण्टन के. काल्डवेल. 1991 इन्वायरॉन्मेण्टल साइन्स स. जी. टाइलर मिलर में वैड्सवर्थ पब्लिशिंग हाऊस बेलमाण्ट, कैलिफोर्निया, पृ. 1 2. श्र. जे. से. जैक्सन. 1991, वही पृ. 2 3. आचार्य महाप्रज्ञ 1996 पर्यावरण : समस्या और समाधान पृ. 1. जैन विश्वभारती, प्रकाशन 4. आचार्य महाप्रज्ञ 1999 कैसी हो इक्कीसवीं सदी पृ. 149 5. वही A 6. वही पृ. 132 7. वही पृ. 133 8. आचार्य महाप्रज्ञ 1999 सुबह का चिन्तन, पृ. 148 जैन विश्वभारती प्रकाशन 9. आचार्य महाप्रज्ञ 1996 पर्यावरण: समस्या और समाधान पृ. 3 जैन विश्वभारती प्रकाशन 10. आचार्य महाप्रज्ञ 1999 कैसी हो इक्कीसवीं सदी पृ. 124 जैन विश्वभारती प्रकाशन 11. आचार्य महाप्रज्ञ: 1999 सुबह का चिन्तन पृ. 249 जैन विश्वभारती प्रकाशन महाविद्यालय विकास परिषद् मगध विश्वविद्यालय, बोधगया - 824234 [आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य एवं चिन्तन विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में प्रस्तुत आलेख] तुलसी प्रज्ञा जनवरी- जून, 2001 101 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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