Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 115
________________ आधुनिक युग के अनेक वैज्ञानिकों, परामनोवैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं भूतविद्या के शीर्षस्थ जानकारों ने मृत्यु के बाद जीवन के अस्तित्व को अनेक प्रमाणों से प्रमाणित किया 'थामस हक्सले, राबर्ट मायरा और डॉ. जे.बी.राइन जैसे पश्चिमी वैज्ञानिकों ने आत्मा के अविनश्वर रूप और मृत्यु के बाद जीवन की स्थिति में अपना विश्वास प्रकट किया है। आचार्य डॉ. जे.बी.राइन के अनुसार मनुष्य का मन शरीर के साथ खत्म नहीं होता। कुछ स्थायी भी रहता है, पुनर्जन्म के अस्तित्व को अस्वीकारने वाले मुख्यतः दो हेतु हैं: 1. पुनर्जन्म है तो हमें उसकी कुछ न कुछ स्मृति अवश्य होनी चाहिये। 2. यदि दूसरा जन्म है, आत्मा की गति और आगति है तो हम क्यों नहीं देख पाते हैं? स्मृति का जहां तक सवाल है, इसे अपनी बाल्यावस्था से समाहित कर सकते हैं। बचपन की यादें हमें युवावस्था में याद नहीं हैं। बहुत सी घटनावलियाँ विस्मृत हो गई हैं। इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपने बचपन को अस्वीकार करते हैं। वर्तमान जीवन में यह स्थिति है, तो पूर्वजन्म की विस्मृति में आश्चर्य ही क्या? __ नो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा- अमूर्त पदार्थ इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। इस आगम वाक्यानुसार यह स्पष्ट है कि चर्मचक्षुधारी प्राणी अमूर्त का साक्षात्कार नहीं कर सकते। तब हम अरूप आत्मा को कैसे देखें? शरीर से उसके निर्गम प्रवेश को कैसे पहचान पायें? सूर्य प्रकाश में नक्षत्र नहीं दिखाई देते, तो क्या नक्षत्रों को नकार दिया जाये? ज्ञान-शक्ति की एकदेशीयता से किसी भी सत् पदार्थ का अस्तित्व स्वीकार न करना उचित नहीं होता। जाति स्मृति क्या है? आगमों में पिछले जन्मों की याद के लिये जाति-स्मरण अथवा संज्ञी-ज्ञान आदि का प्रयोग हुआ है। जाति का मतलब जन्म से है और स्मृति का मतलब याद से है। अतः जिस ज्ञान से पूर्वजन्मों की स्मृति हो जाती है, उसे जाति स्मृति ज्ञान कहते हैं। जाति स्मरण एक ऐसी अनूठी फिल्म है जो व्यक्ति को पूर्ववर्ती एक जन्म से नौ समनस्क जन्मों तक घटित घटनावलियों की रील कुछ क्षणों में दिखा सकती है और आचारांग वृत्ति के अनुसार संख्येय जन्मों तक की भी घटनाएं। यह इस ज्ञान की अद्भुत क्षमता एवं अतुलनीय विशेषता है। जैन दर्शन में पांच प्रकार के ज्ञान माने गये हैं :1. मतिज्ञान (अभिनिबोध) 2. श्रुत-ज्ञान 3. अवधिज्ञान 4. मनः पर्यव ज्ञान 5. कैवल्य-ज्ञान । प्रथम दो विकल्प प्रत्येक प्राणी में पाये जाते हैं किन्तु ज्ञान का क्षमोपशम सब प्राणियों 110 AIIIIII TITTWITTIY तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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