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साधु (श्रमण) साध्वी (श्रमणी) श्रावक एवं श्राविका ये संघ के चार प्रमुख अंग हैं। इसी प्रकार महाव्रत एवं अणुव्रत भी संघ के दो प्रमुख स्तम्भ हैं। आचार्य तुलसी द्वारा संघठित एवं प्रवर्तित तेरापंथ नामक यह संघ अहिर्निश लीन है - समाज, राष्ट्र एवं विश्व के समुन्नयन में।
तेरापंथ के दोनों ही आचार्य उद्भट विद्वन्मनीषी एवं सहृदय कवि रहे हैं। आचार्य तुलसी ने संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में विशाल साहित्य-संरचना की। महाश्रमणी कनकप्रभाजी ने आचार्यश्री के कर्तृत्व का सांगोपांग विवेचन किया है। आचार्य तुलसी ने दो सिद्धान्तग्रंथ (तत्त्वविद्या, जैनसिद्धान्तदीपिका) एक योगग्रंथ (मनोनुशासनम्) एक अनुशासन ग्रंथ (पञ्चसूत्रम्) तथा दो जीवनवृत्त (श्री कालू यशोविलास तथा सहिष्णुता की प्रतिमूर्ति) लिखे। जीवन के अन्तिम दशक में आपने बोध (आचार-बोध, संस्कारबोध, व्यवहारबोध) प्रबोध (तेरापंथप्रबोध) तथा सम्बोधग्रंथ (श्रावकसंबोध) लिखे । मात्र 12 वर्ष की अल्पवय में आचार्य तुलसी का कवित्व जाग्रत हो उठा था। वह सन्त भी थे, साहित्यकार भी। परन्तु उन्होंने अपने सन्त-व्यक्तित्व को सदैव गरिमामण्डित रखा।
पूज्य आचार्य महाप्रज्ञ सच्चे अर्थों में सिद्धसरस्वतीक आचार्य हैं। हिन्दी, संस्कृत आदि भाषाओं में वह शताधिक सिद्धान्त एवं सरस काव्यग्रंथ प्रणीत एवं प्रकाशित कर चुके हैं। उन्होंने देववाणी संस्कृत को यदि अश्रुवीणासरीखा ललित गीतकाव्य दिया है तो राष्ट्रभाषा हिन्दी को ऋषभायण जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य। वह गहन चिन्तक, उदार संघशास्ता एवं सर्वधर्मसमन्वयी सहिष्णु धमाचार्य-सब कुछ हैं। ऐसे कल्पतरुकल्पदेशिक के श्रीचरणों में मेरी विनम्र प्रणामाञ्जलि अर्पित है। आचार्य महाप्रज्ञजी अणुव्रत को अखण्ड मानवता का आन्दोलन मानते हैं और मैं हृदय की सम्पूर्ण निष्ठा के साथ आचार्यश्री को इस युग का एकमात्र अखण्ड महामानव मानता हूं।
शिमला विश्वविद्यालय,
शिमला-5
तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 AI
WWWII 107
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