Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ तो प्राप्त करता ही है, उनमें निहित मूल्यों को भी आत्मसात् करता है। जैसे कायोत्सर्ग या प्रेक्षाध्यान वाले पाठ व्यक्ति को अपने श्वसन तंत्र से लेकर मन-मस्तिष्क की संरचना से तो अवगत करवाते ही हैं, उनकी कुछ विधियों, प्रयोगों, आसनों को आजमा कर स्वयं यह अनुभव करने का अवसर भी देते हैं कि मनुष्य के लिये क्यों उपयोगी है। ___ हम जानते हैं कि ज्ञान का विखण्डन हितकर नहीं है। ज्ञान की किसी एक शाखा की उपशाखा का विशेषज्ञ बन आप काम तो चला सकते हैं, पैसा भी कमा सकते हैं और ख्याति भी पा सकते हैं पर कोई ऐसा योगदान नहीं दे सकते जिससे आने वाली पीढ़ियाँ आपको याद रख सकें। महात्मा गांधी तो बैरिस्टर बनने गये थे, नियमानुसार उन्हें कानून का विशेषज्ञ बनना चाहिये था लेकिन वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बने जिसमें अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, राजनीति, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और अनेक धर्मों तथा विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के ज्ञान का आत्मसातीकरण था। वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ के ज्ञान की सीमाओं को पहचानना भी अत्यन्त कठिन काम है। मैं नहीं जानता कि ये क्या नहीं जानते। बहुत कुछ जानकर वे जिस निष्कर्ष पर पहंचते हैं वह ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म से निर्मित एक ऐसा दिवा स्वप्न है जो समग्र रूप से ठोस धरातल पर खड़ा है। वे व्यक्ति को सुधारना चाहते हैं लेकिन सुधार के जो उपाय सुझाते हैं वे इतने सरल और व्यावहारिक हैं कि कोई भी उन्हें कर सकता है। उनमें कोई रहस्य या चमत्कार नहीं है लेकिन उनके प्रयोगों के परिणाम अवश्य हैरतंगेज हैं। आप सोच भी नहीं सकते कि छोटे-छोटे प्रयोगों से एक सामान्य मनुष्य भी कैसे सतह से ऊपर उठ कर स्वयं को असामान्य बना लेता है। वे दिमाग को खुला रखने पर जोर देते हैं लेकिन हर बात को स्व विवेक के निकष पर कसकर खरा पा लेने के बाद ही ग्रहण करने का प्रावधान भी करते हैं। उनके ज्ञान के आलोक में आज शिक्षा में जिन मूल्यों की स्थापना बहुत जरूरी है उनमें संयम प्रथम स्थान पर है। वे अहिंसा से भी संयम को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि संयमहीनता ही हिंसा को जन्म देती है। संयमी व्यक्ति अहिंसक तो बन ही जाता है, स्वभाव से शान्तिप्रिय भी बन जाता है। उनकी मान्यता है कि संयम के साथ शिक्षा व्यक्ति में श्रम के प्रति सम्मान, सादा जीवन-शैली; पर्यावरण मैत्री और परपीड़न से दूर रहने की भावना जैसे मूल्यों को भी विकसित करे। वे प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति में एक ऐसे नागरिक की छवि देखना चाहते हैं जो स्वयं तो सुखी हो ही, परिवार, समाज व देश को भी सुखी बनाने में सहायक हो। सुख से उनका तात्पर्य भौतिक सुविधाओं से पैदा किया गया सुख नहीं बल्कि शान्ति, संयम व सन्तोष से स्वाभाविक तौर पर उपजा सुख है। आज जरूरत है, हम मिल कर मनुष्य को सामूहिक रूप से सुखी बनाने के उनके द्वारा सुझाये गये उपायों को शिक्षा के माध्यम से संप्रेषित कर इस अभियान में अपना योगदान दें। 383 स्कीम नं. 2, लाजपत नगर, अलवर-301 001 * 'उच्च शिक्षा में मूल्यों का उन्नयन ' विषयक कार्यशाला में (15-16 मई, 2001) में प्रस्तुत आलेख । 60 MINITI IIIIIIIII तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146