Book Title: Tulsi Prajna 2001 01
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ वर्षों या इससे अधिक भी अस्तित्व में बने रहते हैं, क्योंकि इनमें विषम परिस्थितियों को झेलने की क्षमता होती है। यदि इन स्कोरों को फिर से अनुकूल वातावरण मिले तो फिर से ये एक सक्रिय बैक्टेरिया के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। (2.5.2) बैक्टेरिया चलते कैसे हैं? बैक्टेरिया हवा पानी की धाराओं के जरिये काफी लम्बा मार्ग तय कर सकते हैं। कपड़े, बर्तन तथा अन्य दूसरी वस्तुयें भी बैक्टेरिया को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं। कुछ बैक्टेरिया के एक पतले बाल जैसा तन्तु होता है जिसकी मदद से वे तैर सकते हैं। कुछ बैक्टेरिया, जिनके यह व्यवस्था नहीं होती है, वे रैंग कर भी चलते हैं। (2.5.3) बैक्टेरिया भोजन कैसे प्राप्त करते हैं? अधिकतर बैक्टेरिया दूसरे जीवों को अपना भोजन बनाते हैं। कुछ प्रजातियाँ प्रकाशसंश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। कुछ बैक्टेरिया दोनों प्रकार से भोजन ग्रहण कर लेते हैं। अधिकतर बैक्टेरिया मृत जीवों को अपना भोजन बनाते हैं। कुछ दूसरे परजीवी होते हैं। कुछ परजीवी बैक्टेरिया अपने आश्रयदाताओं को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते है जबकि कुछ अन्य बीमारियाँ पैदा करते हैं। (2.5.4) बैक्टेरिया प्रजनन कैसे करते हैं? अधिकतर बैक्टेरिया अयोनिज (asexually) प्रजनन करते हैं जिसमें द्विविभाजन द्वारा एक जैसे दो बैक्टेरिया बनते हैं। अधिकतर बैक्टेरिया जल्दी से विभाजित हो जाते हैं तथा शीघ्र ही अपनी वंशवृद्धि करते हैं। कुछ तो मात्र 9.5 मिनिट में ही दो हो जाते हैं। यदि इन्हें अच्छी खुराक उपलब्ध कराई जाये तो ये दस घण्टे में एक बैक्टेरिया के दस लाख हो जायें। नम तथा गर्म वातावरण इनकी वृद्धि के लिए अनुकूल होता है। जब एक बैक्टेरिया द्विविभाजन करता है तो नये बने दो बैक्टेरिया में ठीक वैसा ही डी.एन.ए. होता है जैसा कि मूल बैक्टेरिया में होता है। जब कुछ बैक्टेरिया प्रजनन के दौरान दूसरे बैक्टेरिया के डी.एन.ए. का कुछ हिस्सा ग्रहण कर लेता है तो इस प्रकार के प्रजनन में नये उत्पन्न बैक्टेरिया में डी.एन.ए. मूल बैक्टेरिया में उपस्थित डी.एन.ए. से अलग होता है। इस प्रकार के प्रजनन को अयोनिज प्रजनन माना गया है। (2.6) वायरस तथा सब-वायरस वायरस वे सूक्ष्म जीव हैं जो दूसरे जीवों की कोशिकाओं में रहते हैं। इनका आकार 0.01 माइक्रोन से लेकर 0.2 माइक्रोन तक होता है। यद्यपि वायरस बहुत ही क्षुद्र एवं सरल होते हैं लेकिन ये कई प्रकार की बीमारियों के मुख्य कारण होते हैं। वायरस इतने सूक्ष्म होते हैं कि वैज्ञानिक इन्हें कभी सजीव तो कभी निर्जीव मानते हैं। ये स्वयं वृद्धि नहीं करते हैं। 22 NITI N II I तुलसी प्रज्ञा अंक 111-112 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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