________________
प्राकृत भाषा : स्वरूप, विमर्श एवं विकास
(महावीर की जन्मभूमि बिहार के विशिष्ट अवदान के सन्दर्भ में)
-डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव
एहिं
प्राकृत-भाषा की उत्पत्ति-व्युत्पत्ति के सम्बध में दो मान्यताएं प्रचलित हैं। प्रथम मान्यता है कि प्राकृत-भाषा संस्कृत से उत्पन्न नहीं हुई है। यह तो प्रकृति के नियमानुसार सबसे पहले स्वयं उत्पन्न हई। इसीलिए इसका नाम 'प्राकृत' है। इसी भाषा में संस्कार आने के बाद संस्कृत-भाषा बनी। जर्मनी के प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक डॉ. रिचर्ड पिशेल ने 'प्राकृत-भाषाओं का व्याकरण'' में अनेक प्राकृत और वैदिक भाषाओं की समानता दिखाई है। जैसे -
प्राकृत > वैदिक त्तण
त्वन आए
> आये (स्त्रीलिंग षष्ठी एकवचन)
> एभिः (तृतीया का बवचन) होहि
> बोधि (आज्ञावाचक) ता, जा, एत्थ > तात्,यात्, इत्था अम्हे
> अस्मे वग्गूहिं
वग्नुभिः सदिधं
सध्रीम् विऊ
> विदुः धिंसु
> प्रंस रुक्ख > रुक्ष इत्यादि।
डॉ. पिशेल से प्रभावित होकर 'प्राकृत-साहित्य का इतिहास' के लेखक डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने प्राकृत को संस्कृत से उत्पन्न मानने को अस्वीकार करते हुए कहा है कि तुलसी प्रज्ञा जनवरी-जून, 2001 NTI TI
I IIIIIIIIIIIIV 37
AAAAAAAAAAAA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org