Book Title: Tulsi Prajna 1992 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ ही प्राकृतिक उद्विकास का परिणाम रहा है। जीवों का जन्म व मृत्यु, उनकी जीवन पद्धतियां, बीमारियां, भूकंप, बिजली गिरना तथा मिट्टी के कटाव जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण पारस्परिक अनुबन्धों से प्रकृति के परस्परोपजीवी बना हुआ है । प्रकृति सजीव और निर्जीव के मध्य संतुलन स्थापित करती है जो निरन्तर बना रहता हैं । मानव उद्विकास, प्राकृतिक पर्यावरण की उपज है; फिर भी उसने प्रायः प्राकृतिक प्रकरण की शक्तियों को चुनौती देते हुए सांस्कृतिक उद्विकास के नाम पर एक नयी रचना की है । आज हम बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों, रेगिस्तानों तथा मिट्टी के कटाव में निरन्तर वृद्धि को अपनी भांखों से देख रहे हैं । जीवन प्रणालियों या संस्थानों में उत्पति-विषयक क्षति, उवंकों कीटनाशकों, दवाओं के अतिशय उपयोग के कारण उत्पन्न संकट, धुंआ तथा परमाणु विस्फोट और वनों की कटाई के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के भी हम प्रत्यक्ष दर्शी हैं । ये सब इस पृथ्वी पर जीवन के आगे चलते रहने में संकट उत्पन्न कर रहे हैं । तक सन् १९८२ में समस्त विश्व में १४ हेक्टर प्रति मिनिट की दर से पेड़ों की कटाई की गई । दक्षिणी अफ्रीका में लगभग ७०,००० हाथी प्रति वर्ष मारे जा रहे हैं । गैंडो की संख्या पिछले दस वर्षों में १/१० अर्थात् १००,००० से १०,० घट गई । आकटिक क्षेत्रों में प्रति वर्ष ५,००० समुद्री घोड़े तथा हाथी मारे जा रहे हैं । चीता अब स्त्रियों के कोटों के उपयोग में इसकी खाल के कारण लगभग लुप्त हो गया है । जेबरा की खाल का उपयोग ढोल नगाड़ो में होता है, इसलिए वे भी १०,००० प्रति वर्ष की दर से मारे जा रहे हैं । १८८५ के पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग ६ अरब कबूतर थे पर उनमें से अन्तिम कबूतर १-९-१९१४ को ओहियो चिड़ियाघर में मर गया । इस प्रकार हो रहे अजस्र विनाश काल में अब आप स्वयं मानव प्राणी के बारे में भी सोच सकते हैं । हम पौधों के महत्त्व से भी इन्कार नहीं कर सकते । हमें भोजन के अतिरिक्त पौधों से ही अपने जीवन के लिए शुद्ध गैस ( आक्सीजन) यानी प्राण वायु मिलती है । हम यह भी भली प्रकार जानते हैं कि पौधे हमारे बिना रह सकते हैं पर हम पौधों के बिना नहीं रह सकते । वृक्ष प्राण वायु के उत्पादन, वायु प्रदूषण के नियंत्रण, तथा मिट्टी के कटाव को रोकने, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने, जल के प्रत्यार्वतन एवं आर्द्रता को नियंत्रित करने पक्षियों व पशुओं को आश्रय देने तथा प्रोटीन के समान्तरण में उपयोगी होते हैं | ५० टन वजन वाला एक वृक्ष अपने जीवन काल के ५० वर्षों में २० लाख रुपयों के मूल्य की सेवा करता हैं । यह इसकी ईमारती लकड़ी, फलों तथा फूलों के रूप में उपयोग के अतिरिक्त है । एक वृक्ष अपने में ईमारती लकड़ी का एक टन बनाने के लिए लगभग डेढ टन हानिप्रद कार्बन डाई आक्साइड को सोख लेता है तथा उपयोगी ऑक्सीजन का एक टन प्रदान करता हैं । लुप्त होने के खतरे के अधीन जी रहे पशुओं के महत्त्व को भी उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है । टर्की का गिद्ध (केथारटीज ओरा ) प्रदूषण विरोधी पर्यावरण संबंधी नियंत्रक है । यह मृतक पशुओं को खाता हैं तथा गन्दगी की सफाई करने वाले के रूप में कार्य करता है । १७८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International ܘ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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