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अबले जह भारबाहए मा मागे विसमे वगाहिया।
पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए ॥" "बल हीन भारवाहक की भांति तू विषम मार्ग में मत चले जाना । विषममार्ग में जाने वाले को पछतावा होता है, इसलिए हे गोतम ! तू क्षण भर भी प्रमाद मत कर।"
यहां प्रमादी मुनि की उपमा बलहीन-भारवाहक से दी गई है। बलहीनभारवाहक भार को उठाने में अक्षम होने से कष्ठ पाता है, विषण्ण होता है, पछताता है, उसी प्रकार प्रमाद में फंसा मुनि भी पछताता है । भार त्यागने वाला भारवाहक
स्वस्थता, प्रसन्नता आदि उत्कृष्ट भावों के विवेचन के लिए भार को त्याग देने वाले भारवाहक को उपमान बनाया गया है :
"काउस्सग्गेणं तीयपड़प्पन्नं पायच्छित्तं विसोहेइ । विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वयहियए 'ओहरियभारोव्व'
भारवहे पसत्यज्झाणोवगए सुहंसुहेणं विहरइ ॥"१५ कायोत्सर्ग से वह अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्तोचित कार्यों का विशोधन करता है। ऐसा करने वाला व्यक्ति भार को नीचे रख देने वाले भार-वाहक की भांति स्वस्थ हृदयवाला हो जाता है और प्रशस्त ध्यान में लीन होकर उत्तरोत्तर सुखपूर्वक विहार करता है।
भारवाहक भार रखकर प्रसन्नचित्त होकर आनन्द का अनुभव करता है उसी प्रकार कायोत्सर्ग के द्वारा जीव अपने संचित कर्म रूपी भार का विशोधन/परित्याग कर परमध्यान में लीन हो आनन्द प्राप्त करता है। (ग) अन्यसामाजिक
बहुश्रुत मुनि की बहुज्ञता एवं श्रुतपूर्णता को उपस्थापिक करने के लिए समुदायवृत्तिवाले सामाजिक को उपमान के रूप में निरूपित किया गया है :
जहा से सामाइयाणं कोट्ठागारे सुरपिखए।
नाणाधन्नपडिपुण्णे एवं हवइ बहुस्सुए ॥" __जिस प्रकार सामाजिकों (समुदाय वृत्ति वालों) का कोष्ठागार सुरक्षित और अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है उसी प्रकार बहुश्रुत नाना प्रकार के श्रुत से परिपूर्ण होता है।
यहां बहुश्रुत की उपमा समुदाय वृत्ति सम्पन्न सामाजिक से दी गई है। गोपालक एवं भाण्डपालक
___ कामुक रथनेमि को प्रबोध देने के लिए गोपाल एवं भाण्डपाल को उपमान बनाया गया है :
खण्ड १८, अंक ३ (अक्टू०-दिस०, ९२)
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