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अनुप्रास और परिकर का समन्वित सौन्दर्य इस गीत को श्रेष्ठ काव्य के पद पर प्रतिष्ठित करता है ।
अर्थान्तरन्यास
सामान्य का विशेष से एवं विशेष का सामान्य से समर्थन होता है वहां अर्थान्तर न्यास होता है । सूक्ति युक्त पद्यों में यह पाया जाता है । इसके लिए उदाहरण द्रष्टव्य हैं गीत संख्या २१, २७, ६३, ६४, ८० आदि ।
काव्यलिंग
जहां कार कार्य भाव हो । उदाहरण गीत संख्या ६, १२, इस प्रकार तेरापंथ - प्रबोध श्रेष्ठ कलाकार द्वारा प्रणीत और इसमें काव्य के विभिन्न गुणों का लावण्य दर्शनीय है ।
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कर्म और श्रद्धा
"पोषण जठै असंजम रो, वो दान दान है, धर्म नहीं ।
मारे एकण नै पुचकारें,
रोष राग है धर्म नहीं ॥
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अर्हत्-आज्ञा
धर्म,
अनाज्ञा अधरम खरी कसौटी है ।
धनस्यूं धर्म खरीदीजै,
आ श्रद्धा जड़ स्यूं खोटी है ॥
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धूप दीप फळ फूल
प्रतिमा
आलम्बण बणण स्यूं,
- डॉ० हरिशंकर पाण्डेय
पूजा
धर्मं नहीं ।
४७ आदि ।
रमणीय गति काव्य है
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पूजनीय हो, जिनमत मर्म नहीं ॥"
- आचार्य तुलसी
तुलसी प्रज्ञा
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