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ने रुचि लेकर विस्तार से विचार किया है । तथा प्रेतों की विविध चेष्टाओं का आकलन भी किया है।
__ चतुर्थ अध्याय में अतीन्द्रिय दृष्टि और दुरबोध की चर्चा है। मैग्गल, रिचेट, राइन आदि मनोवैज्ञानिकों ने इन्द्रियेतर ज्ञान की सत्ता मानी है । जैन ग्रन्थों में अतीन्द्रिय बोध को स्वीकार किया गया है। अनुगामिक, अननुगामिक वर्धमान, अनवस्थिता आदि कई प्रकार की अतीन्द्रिय दृष्टियों की चर्चा तत्त्वार्थसूत्र के आधार पर की गई है।
पांचवें अध्याय में पूर्वाभासी स्वप्नों का विवेचन है । जंग, फ्रायड आदि ने स्वप्नों का जो मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है, उसे आत्मसात करके यहां जैन अवधारणा स्पष्ट की गई है। कई प्रसिद्ध स्वप्नों (वर्धमान महावीर की माता ने गर्भावस्था में जो चौदह स्वप्न देखे थे, महावीर ने कैवल्य-लाभ की पूर्वरात्रि में जो स्वप्न देखे थे, चन्दगुप्त मौर्य ने जो सोलह स्वप्न देखे थे) का विश्लेषण इस अध्याय की विशेषता है।
पुस्तक जिस उद्देश्य से लिखी गई है, उसमें लेखकों को पर्याप्त सफलता मिली है । रूपरेखा के अनुमार विषय का प्रतिपादन उन्होंने वैज्ञानिक रीति से किया है । उनकी भाषा विषय के अनुरूप है । पाद टिप्पणियां, संदर्भ ग्रंथ सूची आदि शोध-प्रविधि के अनुसार है । शुद्ध छपाई, आकर्षक गेट अप वास्तव में स्पृहणीय हैं । नए विषय पर हिन्दी में लिखी यह पुस्तक इस ज्ञान की नई दिशा खोलती है । एतदर्थ लेखकद्वय और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
डा० आनन्द मंगल वाजपेयी प्रोफेसर, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग
राजकीय महाविद्यालय. डीडवाना (राज.) ४. प्यार का गणित-लेखक-करलाल मेहता "बाबूजी" प्रकाशकके० जैन पब्लिशर्स, पो० बॉ० नं० १०, लाडनूं-- मूल्य २०/- पृ० १७४
कहानी मानव जीवन की चिर सहचरी रही है । कहानी की सरसता, जीवन का आरोह-अवरोह इस बात पर निर्भर करता है कि कहानीकार जिन्दगी की नब्ज को कैसे पकड़ता है और उसकी अन्तर्वस्तु को किस प्रकार रोचक कलेवर प्रदान करता है । इस दृष्टि से शंकरलाल मेहता के पास अनुभवों का पिटारा है, सूक्ष्म दृष्टि है और तदनुरूप शब्दों का जामा पहनाने की क्षमता भी है । इन सबमें उनकी जो जागरूकता है उसी का परिणाम है कि उनकी कहानियां यथार्थ धरातल को संस्पर्श करती हैं, पाठकों के अन्तर्मन को छूती हैं और उन्हें कर्तव्यों की दिशा में भावायित करती हैं ।
"प्यार का गणित" उन्नीस रोचक, सरस एवं शिक्षाप्रद कहानियों का अनूठा संकलन है। इसकी अधिकांश कहानियां रेल विभाग के विविध आयामी विषयो की समस्याओं को उघाड़ती है और उनका समाधान देती हैं । ऐसा संभवतः लेखक का इस विभाग से वर्षों तक संबंध रहने के कारण हुआ है।
प्रथम कहानी “अपना-पराया" में बन्ध्या स्त्री की सामाजिक दुर्दशा का चित्रण बखूबी हुआ है । "शराफत का चोला" एक असहाय व्यक्ति की कहानी है जो परि
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तुलसी प्रज्ञा
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