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पत्नी - वियोग
नियति योग पत्नी वियोग ८।१
ध्वनिबिम्ब
'शादी की शहनाई की' श्रवण सुखदता प्रसिद्ध है । मीखण के नान्ही वय में शादी की शहनाई बज गई ||५|| जब बालक उत्पन्न होता है तो घर-घर में गीत की ध्वनि गूंजित होने लगती है - यह लोक रीति भी है । भीखण के जन्म के समय घर-घर में मंगल-गीत का गूंजार होने लगा ।
हो सन्तां ! मंगल गीतां रो घर-घर में गुंजार हो ||२||
चाक्षुष बिम्ब
तेरापंथ - प्रबोध के अनेक स्थलों पर रमणीय चाक्षुष बिम्बों की उपलब्धि होती है । कतिपय उदाहरण द्रष्टव्य हैं :
परिवार
हो सन्तां ! जाई इक सुता, सहज सिमट्यो परिवार हो ||५|| आचार्य भीखण की वीरता का दर्शन बाल्यकाल में ही होता है :ari बाई ! थारो बेटो देख शेर ज्यूं गूंजला ।
धूला थर-थर कायर ओ कर्म कटक स्यूं जूंझला ॥१०॥
मित्र वर रामचरणजी का सुन्दर बिम्ब अवलोकनीय है
'
रामचरण जी भीखणजी रे मंत्री रो सम्बन्ध हो ।।
वन्दनमुद्रा में आचार्य - भिक्षु का बिम्ब किसे संवेग उत्पन्न नहीं करता :हे प्रभो ! यह तेरापंथ पथिक म्हे संशय दूर कियो ।
हो सन्तां ! वन्दन- मुद्रा में बोल्या बारम्बार हो || ३५ ॥
एक स्थान पर रूपकात्मक प्रतिपादन के संदर्भ में हरी-भरी क्यारी का दर्शन होता है :
पर्वतमाला से प्राकार ||७४ ||
उपासना – ६६,
उपरोत्तर विवेचन के अतिरिक्त भी अनेक सुन्दर एवं सहज-संवेद्य बिम्बों का आस्वादन विवेच्य काव्य में होता है । यथा तप - ७, नियतिवाद - ८, भावुकता - १५, बीमार भीखण - १६, हर्ष - १८, क्रोध - १९, नदी - २५, चत्तारी मंगल - ९७, ज्योतिर्मय - चिन्मय दीप - ५३, मर्यादापत्र - ६०, आदर्श - ६१, अनशन - ७७, चौबिहार उपवास - ८०, मंत्र - ९८, अवतारवाद - आचार्य - १०२, जयाचार्य - १०५ महासती सरदारांजी - १०६, १०७ अणुव्रत - ११८. प्रेक्षाध्यान - ११९, जैन विश्वभारी शिक्षण आदि ।
१०४, जीतमलमघवागणी - संस्था -- १२२
सूक्ति-सौन्दर्य
सूक्तियां किसी भी भाषा या कथन को सशक्त बनाती हैं । इससे भाषा चारुता
खंड १८, अंक ३ (अक्टू० - दिस०, ६२ )
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