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घुबेला-संग्रहालय में ही अभिषेकी गजों वाली ऐसी एक-एक प्रतिमा पाश्वनाथ तथा नेमिनाथ तीर्थंकरों की भी हैं। वे दोनों प्रतिमाएं भी भासनस्थ (बैठी) मुद्रा
नेमिनाथ तीर्थंकर की स्थानक (खड़ी) मुद्रा वाली एक प्रतिमा इलाहाबादसंग्रहालय (सं० सं० ए० एम० ४९९) में है ।' लगभग ६वीं शताब्दी ई० में निर्मित यह प्रतिमा मध्यप्रदेश के रीवा जनपद में गुर्गी से प्राप्त हुई थी। यद्यपि यह प्रतिमा खण्डित है तथापि इसका परिकर अखण्डित और स्पष्ट है। इसमें पद्मदलों वाले प्रभामण्डल तथा छत्र के पाश्वों में सबसे ऊपर मालाधारी विद्याधर-दम्पति हैं और उनके नीचे गज । किन्तु इस प्रतिमा के गज अभिषेक मुद्रा में नहीं हैं।
मध्यप्रदेश में ही शिवपुरी-संग्रहालय में भी कतिपय ऐसी तीर्थकर-प्रतिमाएं प्रदर्शित हैं जिनके परिकर में गजों का अंकन भी है। संभवनाथ की एक प्रतिमा में छत्र की अगल-बगल जो गज उकेरे गए हैं उनकी सूड में पद्म-कलिकाएं हैं। प्रतिमा के पादपीठ में अश्व के अंकन (लाछन) के कारण इस प्रतिमा की पहचान संभवनाथ से की जा सकी है। एक अन्य अचीन्ही प्रतिमा में तीर्थंकर को पद्मासन में बैठे ध्यानमुद्रा में उत्कीर्णं किया गया है। प्रतिमा के वक्ष पर श्रीवत्स का सुन्दर लांछन है । यद्यपि इस प्रतिमा का दाहिना ऊपरी भाग नष्ट हो गया है तथापि बाईं ओर का जो भाग अवशिष्ट है उसमें छत्र की ओर मुख किए गज का अंकन स्पष्ट है। इसी प्रकार एक अन्य तीर्थंकर प्रतिमा का आसन और छत्र अत्यधिक अलंकृत और आकर्षक हैं । इस प्रतिमा की भी ठीक पहचान नहीं हो सकी है। एक अन्य प्रतिमा पार्श्वनाथ की है जो कि सपं की कुण्डली पर पद्मासन मुद्रा में है और जिसके शीर्ष के ऊपर नाग का सप्तशीर्षी फण है । इन दोनों प्रतिमाओं के परिकर में गज हैं और बाद वाली पाश्र्वनाथ की प्रतिमा के गज अपनी उठी हुई सूंडों में घट लिए हुए हैं। शिवपुरी-संग्रहालय में एक द्विमूर्तिका प्रतिमा भी है जिस पर अजितनाथ और संभवनाथ को कायोत्सर्ग मुद्रा में अंकित किया गया है। इन प्रतिमाओं के परिकरों में अन्य अलंकरणों के साथ-साथ छत्र के पाश्वों में अभिषेकी गज भी हैं।
झांसी स्थित रानीमहल-संग्रहालय में एक पार्श्वनाथ समेत कई तीर्थंकरों की ऐसी प्रतिमाएं संग्रहीत हैं जो स्थानक मुद्रा में हैं । ललितपुर (उत्तरप्रदेश) से प्राप्त ये सभी प्रतिमाएं पूर्व मध्यकाल की हैं और इनके परिकरों में अभिषेकी गज हैं जिन्हें मालाधारी विद्याधरों के ऊपर स्थान दिया गया है।
सप्तशीर्षी फण के छत्र वाली पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा को उत्तरप्रदेश के गोण्डा जनपद में स्थित श्रावस्ती के भग्नावशेषों से प्राप्त किया गया है। पद्मासन मुद्रा में बैठी तीर्थंकर की इस प्रतिमा के दोनों पाश्र्यों में एक-एक चामरधारी, विद्याधर-दम्पति और छत्रावली के ऊपर अभिषेक मुद्रा में सूड उठाए गज अंकित हैं। श्रावस्ती से ही प्राप्त ऋषभदेव की आसन वाली बैठी प्रतिमा में २४ जिनों की
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तुलसी प्रज्ञा
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