Book Title: Tulsi Prajna 1992 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati
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स्वमुखेनैवानुभवः । उत्तरप्रकृतीनां तुल्यजातीयानां परमुखेनापि भवति आयुदर्शन चारित्रमोहवर्जानाम् न हि नरकायुर्मुखेन तिर्यगायुमंनुष्यायुव विपच्यते । नापि दर्शन मोहश्चारित्रमोहमुखेनन,
चारित्रमोहो दर्शन
मोमुखेन । १४. भगवती १,४ : हंता कम्मे नरिथ तस्स अवेइत्ता मोक्खो " पन्नत्ते ।
१५. भगवती १, ४ : दुविहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा
एस कम्मे य, अणुभाग कम्मे य । तत्थ णं जं तं पएसकम्मं तं नियमा वे एइ, तत्थ
णं जं तं अणुभाग कम्मं तं अत्थे गइयं णो वेएइ ।
१६. भगवती, १.४ वृत्ति : प्रदेशा कर्मपुद्गला ।
जीवप्रदेशेष्वोतप्रोताः तद्रूपं कर्म प्रदेश कर्म ।
१७. भगवती वृत्ति, १.४ : अनुभाग : तेषामेव कर्म प्रदेशानां संवेद्यमानताविषयो रसः
तद्रूपं कर्मोऽनुभाग-कर्म ।
गोयमा ! नेरेइयस्स वा तिरिक्खमणुदेवस्स वा जे कडे पावे • एवं खलु मए गोयमा ! दुविहे कम्मे
१८. भगवती ५.५ ।
१९. ठाणं, ४.६०३ ।
२०. कर्म और पुरुषार्थ - महाप्रज्ञ, जिनवाणी 'कर्म विशेषांक' पृ० १०५ । २१. मनोविज्ञान और शिक्षा, पृ० १८३ - डॉ० सरयू प्रसाद चौबे |
२२. पातंजल योग सूत्र, २, ३३ ।
२३. (क) दशवेकालिक ८.३९ :
२१२
(ख) शांत सुधारस, संवर भावना ८.३ ।
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"किसी की कृपा से भला नहीं होता किसी की अकृपा से बुरा नहीं होता
भला या बुरा होने का है तो होता है, अन्यथा नहीं ।"
- संत अमिताभ
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तुलसी प्रज्ञा
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