Book Title: Tulsi Prajna 1992 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 36
________________ लोक देवता और उनके वाद्य सभी प्रकार की देवी-देवताओं की आराधना संगीत कला के माध्यम से की जाती है । मन्दिर, देवालय, मठ आदि धार्मिक स्थलों में नगारा, झालर, मजीरा आदि वाद्य यन्त्रों की ध्वनि के साथ इनकी पूजा की जाती है । संगीत की स्वर-लहरी के साथ देवी-देवताओं की पूजा करने के पीछे सबसे बड़ा रहस्य यह है कि संगीत उक्त देव-शक्ति के अनुरूप वातावरण बनाता है । वह मन को एकाग्र करता है तथा हृदय के भावों को उक्त-शक्ति के साथ जोड़ता है । दैविक शक्ति के अनुरूप ही उनके पृथक्पृथक वाद्य-यंत्र हैं। जैसे:-भैरूजी:-भरूंजी के भोपे ''मसक" वाद्य बजा कर उनके गुण गाते हैं। कुछ भोपे भै रूंजी के नाम पर "डेरू" बजाते हैं । "मसक" (सुषिर) स्वरवाद्य है और डेरू "लय" प्रकट करने वाला वाद्य है । माताजी:--माताजी के भोपे भी "डरू" का प्रयोग करते हैं । “डै रूं" के अतिरिक्त कांसा धातु की थाली बजा कर भी "लय" दरसाते हैं । गोगाजी:--लोक-देवता गोगाजी के भोपे भी "डरूं" वाद्य का उपयोग करते हैं । इसके साथ ढोल, थाली, कटोरा, सांकल, चिमटा आदि साधनों के माध्यम से "लय" प्रकट कर नाचते हैं । पाबूजी:--राठौड़ कुल में जन्म लेने वाले पाबूजी की पूजा भी राजस्थान में लोक देवता के रूप में की जाती है। इनके मोपे "माटा" बाद्य बजाते हैं। मिट्टी के बने चौड़े मुंह के माटों पर चमड़ा मंढा जाता है। दो माटे बराबर रख कर वादक हाथों की थाप देकर इन्हें बजा कर 'लय' प्रकट करता है । रामदेवजीः - के पुजारी "तन्दुरा' वाद्य के साथ गाते हैं। ये लोग ढोलक व मजीरा वाद्यों द्वारा “लय" दरसाते हैं । इन वाद्यों के अतिरिक्त 'तेरह-ताली” नामक नृत्य इनकी औरतें करती हैं । यह नृत्य बैठे-बैठे ही मजीरों पर विभिन्न प्रकार से आघातों के साथ चलता है । जाम्भोजी:-विश्नोई सम्प्रदाय के अनुयायी इनकी उपासना करते हैं । इनके भक्त “नगारा' वाद्य बजाते हैं । ये लोग नगारों को हाथ की थाप से आघात देकर बजाते हैं । तेजाजीः-वीर तेजाजी के पुजारी माटों पर कांसा धातु की थाली को उल्टी रख कर बजाते हैं। यह क्रिया भी "लय" प्रकट करने वाली है । गणगौरःगणगौर की पूजा बालिकाएं गीत गाकर करती हैं। किन्तु मेले के दिन गणगौर की की प्रतिमा के सम्मुख नगारा अथवा ढोल बजाए जाते हैं जिसकी लय पर नृत्य धार्मिक भावना के अनुरूप किया जाता है । डूंगजी-जवाहरजी:-की गाथा गाने वाले "रावणहत्था" बजाते हैं । इस वाद्य को पाबूजी की फड़ (पट) बांचने वाले भी बजाते हैं । "रावण-हत्था" की गज के घुघरं बांधे रखते हैं, उनकी झन्कार करके लय प्रकट करते हैं । होलिका:-हिन्दू समाज में मुख्य दो त्यौहार समस्त भारत में मनाए जाते हैंदीपावली के अवसर पर किसी प्रकार के संगीत, नृत्य के आयोजन नहीं होते परन्तु होली के अवसर पर "डफ" (चंग) वाद्य के साथ गीत गाने का उपक्रम बसन्त पंचमी से प्रारम्भ होकर होली के मुख्य त्यौहार तक चलता है । डांडिया नृत्य और गीदड़ नृत्य नगारों की लय के साथ आयोजित होते हैं और होलिका पूजी जाती है । -डॉ जयचन्द शर्मा १९८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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