Book Title: Tulsi Prajna 1992 10
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ भी गया है कि प्रत्येक प्राणी को अपने इस मानव पर्याय का लाभ उठाना चाहिए तथा उसे अपना मुख्य ध्येय बोधि-प्राप्ति को ही बनाना चाहिए । भगवान् महावीर मनुष्यों को बोधि प्राप्ति का संदेश देते हुए कहते हैं कि -हे मनुष्यो ! बोध को प्राप्त करो; जब तक जीवन है तभी तक तुम बोध को पा सकते हो, मृत्यु के बाद इसे प्राप्त करना संभव नहीं है। क्योंकि बीती हुई रात्रियां जिस प्रकार वापस नहीं लौटती है ठीक उसी तरह से पुनः मानव जीवन मिलना भी दुर्लभ है । अतः व्यक्ति को चाहिए कि वह सम्यक् आचरण का आश्रय लेते हुए बोधि प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे । क्योंकि उसे बोधि प्राप्ति का स्वर्ण अवसर मिला है अतः उसे इस अवसर को खोना नहीं चाहिए। इस तरह से हम देखते हैं कि अनुप्रेक्षाओं के चिंतन करने से व्यक्ति का विचार अत्यंत सम्यक् एवं शुद्ध हो जाता है। शुद्ध विचारों से युक्त होकर वह सांसारिक विषय-वासनाओं में आसक्त नहीं होता है। अनासक्त होकर वह कर्म-पुद्गलों का नाश करने की प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझ लेता है और इस दिशा में प्रवृत्त होकर मात्मा पर पड़े हुए कर्म-पुद्गलों का नाश करता है। जब वह ऐसा कर लेता है तो उसे चरमपद की प्राप्ति हो जाती है और वह परमसुख की अनुभूति करता है । 00 संदर्भ :१. भगवती सूत्र, १।२।६४ २. भावनाजोगसुद्धप्पया, जले नावा व अहिया । नावा व तीरसंपन्ना, सव्वदुक्खा ति उट्टइ ।। -सूत्रकृतांग, १५।५ ३. अद्धवमसरणमेगत्तं भण्णसंसारलोपमइत्तं । आस वसंवर णिज्जर धम्म बोधि च चितिज्ज ।। -भगवती-आराधना, १७१०, कात्तिके यानुप्रेक्षा, १।२, ज्ञानार्णव, २०७० ४. इदं शरीरमनित्यम् अशुच्य शुचि संभवम् । अशाश्वतावासमिदं, दुःखक्लेशानां भाजनम् ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, १९।१३ ५ जन्म-जरा-मरण भए अभिहुए विवि हवा हिसतत्ते । लोयम्मि नत्थि सरणं जिणि दवरसासणं मुत्तं ।। --मरणविभति, ५७६ ६. बहुतिण्व दुक्ख सलिलं अणंतकायप्प वेसपादालं । चतुपरिबट्टावत्तं चद्गदि बहुपट्टमणतं ।। -भगवती-आराधना, १७६४ ७. न तं अरी कंठद्देत्ता करेइ जसे करे अप्पणिया दुरप्पा । से नाहिई मच्चुमुहं तु पत्ते पच्छाणुतावेण दया विहूणो ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, २०।४८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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