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प्रति से उनका कोई सम्बन्ध है या नहीं। यदि पूना की यह प्रति अकेली भी हो तो भी इसका कई दृष्टियों से महत्त्व है। मलयसुन्दरीचरियं के सम्पादन के साथ इसे भी प्रकाश में लाने का प्रयत्न हम करेंगे ।
OD सन्दर्भ सूची १. जैन, प्रेम सुमन : “मलयसुन्दरीचरियं की प्राकृत पांडुलिपियां" नामक लेख,
वैशाली इन्स्टीट्यूट रिसर्च बुलेटिन नं० ४ (१९८४) में प्रकाशित, पृ० ४९-५२। २. वेलणकर, एच० डी० : जिनरत्नकोश (१९४४), पूना, पृ० ३०२ एवं
३०५। ३. कापड़िया, एच० आर० : डिस्क्रिप्टिव कैटलाग ऑफ मेनुस्क्रिप्टस, भाग १९,
सेक्शन I, पार्ट II (१९७७), संख्या-१४०४ । ४. (१) धामी० मोहनलाल सी० : "महाबल मलयासुन्दरी", अनु०-मुनि
दुलह राज, चूरू १९८५ । (२) जैन, रोशनलाल : मलयसुंदरी, जयपुर (१९८७) । ५. सुश्रावक श्री हेमराजार्थे कवि हरिराज-विरचिते ज्ञानरत्न उपाख्याने मलयसुंदरी
चरिते मलयसुंदरी-जन्म-वर्णनो नाम प्रथमः स्तवकः । ६. लभ्रूण मलयामहत्तरययं जाइगयं सा सिवं ।
हेमप्पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउ हिंकारा (७९७) । ७. जे अत्थक हरिराइ गाहसरसे संखेइ वित्थरिओ । गा० १३१ ८. आएसो कमलासिणी हरि कवि कीया कहां सुंदरी।
हेमस्सग्गह पु०व दिसि हरे से संखेवि विस्थारिया ।। गा० ५२९ ९. पुव्व-कहा-अनुसरि रइयं हरीराज मलयावरचरियं । गा० ७९६ १०. देसाई, एम० डी० : जैन साहित्यनो इतिहास, पृ० ३३६ टित्पण ३६६ । ११. मुनि पुण्यविजय : कैटलाग ऑफ सस्कृत एण्ड प्राकृत मैनुस्क्रिप्ट्स पार्ट-४, पृ०
(१९६८), पृ० १५६ । १२. मुनि पुण्यविजय : जैसलमेर कलेक्शन, अहमदाबाद (१९७२), पृ० २०२, पृ०
२५९ एवं २६० १३. जैन साहित्यनो इतिहास, पैराग्राफ ६६७ । १४. राजस्थान का जैन साहित्य, जयपुर, पृ० १७७ १५. णाम-दसण-चरिणोगुणनिही सीलस्स विक्खातओ।
सो मलयाचरियं सुजम्म-पढमे हेमस्स सुक्खंकरो ।। गा० १३१ १६. जैन साहित्यनो इतिहास, पृ० ४५३ १७. वही, पृ० ५०३, टिप्पण संख्या ४७१ १८. हेमप्पहारि (येण) कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ।। गा० ७९७ १९. सं० १५४३ में कवि उदयधर्म का "मलयसुंदरीरास" एवं सं० १५८० में
खण्ड १८, अंक ३, (अक्टू०-दिस०, ९२)
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