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धम अनुकाक
सम्वन्ध-भाप्य
यस्माजातं जगत्सर्व यस्मिन्नेव प्रलीयते ।
येनेदं धार्यते चैव तस्मै ज्ञानात्मने नमः ॥१॥ जिससे सारा जगत् उत्पन्न हुआ है, जिसमें ही वह लीन होता है और जिसके द्वारा वह धारण भी किया जाता है उस ज्ञानस्वरूपको मेगा नमस्कार है।
यैरिमे गुरुभिः पूर्व पदवाक्यप्रमाणतः । व्याख्याता सर्ववेदान्तास्तानित्यं प्रणतोऽस्म्यहम् ॥ २॥ पूर्वकालमें जिन गुरुजनोंने पद, वाक्य और प्रमाणोंके विवेचनपूर्वक इन सम्पूर्ण वेदान्तों (उपनिपदों) की व्याख्या की है उन्हें मैं सर्वदा नमस्कार करता हूँ।
तैत्तिरीयकसारस्य मयाचार्यप्रसादतः । विस्पष्टार्थरुचीनां हि व्याख्येयं संप्रणीयते ॥३॥
जो स्पष्ट अर्थ जाननेके इच्छुक हैं उन पुरुषोंके लिये मैं श्रीआचार्यकी कृपासे तैत्तिरीयशाखाके सारभूत इस उपनिपद्की व्याख्या करता हूँ।