Book Title: Suyagadam Part 01
Author(s): P L Vaidya
Publisher: Motilal Sheth

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Page 77
________________ 2. 1. 9. 79. ] पोण्डरियाणे ७१ णं उवदंसेजा अयमाउसो खोयरसे अयं छोए, एवमेव जाव सरीरं । से जहानामए - केइ पुरिसे अरणीओ अगि अभिनिव्वट्टित्ताणं उवसेजा अयमाउसो अरणी अयं अग्गी, एवमेव जाव सरीरं । एवं असन्ते संविजमाणे । जेसिं तं सुयक्खायं भवइ तं जहा - अन्नो जीवो अनं सरीरं । तम्हा ते मिच्छा || से हन्ता तं हणह खणह छE SEE यह आलुम्पह विलुम्पह सहसकारेह विपरामुसह, एयावया जीवे नत्थि परलोए । ते नो एवं विप्पडिवेदेन्ति, तं जहा - किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुक्कडे इ वा दुक्कडे इ वा कलाणे इ वा पावए इ साहुइ वा असाहुइ वा सिद्धी इ वा असिद्धी इ वा निरए इ वा अणिरए ३ वा । एवं ते विरूवरूवेहिं कम्मसमारंभेहिं विरूवरूवाई कामभोगाई समारभन्ति भोयणाए || एवं एगे पागब्भिया निक्खम्म मामगं धम्मं नवेन्ति । तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा साहु सुयक्खाए समणेति वा माहणेति वा कामं खलु आउसो तुमं पूययामि, तं जहा - असणेण वा पाणेण वा खाइमेण वा साइमेण वा वत्थे वा डिग्गहेण वा कम्बलेण वा पायपुञ्छणेण वा । तत्थेगे पूयणाए समाउहिंसु तत्येंगे पूयणाए निकाइंसु । पुव्यमेव तेसिं नायं भवइ - समणा भविस्सामो अणगारा अकिंचना अपुत्ता अपसू परदत्तभोणो भिक्खुणो पावं कम्मं नो करिस्सानो समुडाए । ते अप्पणा अपडिविरया भवन्ति, सयमाइयन्ति, अन्ने वि आइयावेन्ति अन्नं पि आययन्तं समगुजाणन्ति । एवमेव ते इत्थिकामभोगेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववन्ना लुद्धा रागदोसवसट्टा । ते नो अप्पाणं समुच्छेदेन्ति ते नो परं समुच्छेदेन्ति ते नो अन्नाई पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई समुच्छेदेन्ति, पहीणा पुब्धसंजोगं आयरियं मग्गं असंपत्ता इति ते नो हव्वाए नो पाराए अन्तरा कामभोगेसु विसण्णा । इति पढमे पुरिसजाए तञ्जीवतच्छरीरए ति आहिए ॥ ९ ॥

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