Book Title: Suyagadam Part 01
Author(s): P L Vaidya
Publisher: Motilal Sheth

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Page 96
________________ यगडाम्म सूयगडम्मि [2. 2. 17. 26ओसहीओ झामेइ जाव अन्नं पि झामन्तं समणुजाणइ, इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ । से एगइओ नो वितिगिञ्छइ, तं जहा-गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेइ अन्नण वि कप्पावेइ अन्नं पि कप्यन्त समणुजाणइ । से एगइओ नो वितिगिञ्छइ, तं जहा-गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालाओ वा जाव गद्दभसालाओ वा कण्टकबोंदियाहि पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ जाव समणुजाणइ । से एगइओ नो वितिगिञ्छइ, तं जहा-गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा जाव मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ । से एगइओ नो वितिगिन्छइ तं जहा-समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दण्डगं वा जाव चम्मछेयणगं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ । इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ । से एगइओ समणं वा माहणं वा दिस्सा नाणाविहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए आफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, कालेण वि से अगुपविहस्स असणं वा पाणं वा जाव नो दवावेत्ता भवइ, जे इमे भवन्ति वोणमन्ता भारकन्ता अलसगा वसलगा किवणगा समणगा पव्ययन्ति ते इणमेव जीवियं धिजीवियं संपडिव्हेन्ति, नाइ ते परलोगस्स अहाए किंचि वि सिलीसन्ति, ते दुक्खन्ति ते सोयन्ति ते जूरन्ति ते तिप्पन्ति ते पिट्टन्ति ते परितप्पन्ति ते दुक्खणजूरणसोयणतिप्पणपिट्टणपरितिप्पणवहबन्धणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवन्ति । ते महया आरम्भेण ते महया समारम्भेण ते महया आरम्भसमारम्भेण विरूवरूवेहिं पावकम्मकिच्चेहिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुञ्जित्तारो भवन्ति । तं जहा-अन्नं अन्नकाले पाणं पाणकाले वत्थं वत्थकाले लेणं लेणकाले सयणं सयणकाले सपुवावरं च णं ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमङ्गलपायच्छित्ते सिरसा हाए कण्ठेमालाकडे आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियमालामउली पडिबद्धसरीरे वग्घारियसोणिसुत्तगमल्लदामकलावे

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