Book Title: Suyagadam Part 01
Author(s): P L Vaidya
Publisher: Motilal Sheth
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सूयगडम्मि [2. 4. 4. 24सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परितप्पणयाए । ते दुक्खणसोयण जाव परितप्पणवहबन्धणपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवन्ति । इति खलु से असनिणो वि सत्ता अहोनिसिं पाणाइवाए .उवक्खाइजन्ति जाव अहोनिसिं परिग्गहे उवक्खाइजन्ति जाव "मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइजन्ति [ एवं भूयवाई ] । सव्वजोणिया वि खलु सत्ता सन्निणो हुच्चा असन्निणो हन्ति असन्निणो हुच्चा सन्निणो होन्ति, होच्चा सन्नी अदुवा असन्नी, तत्थ से अविविचित्ता अविधूणित्ता असमुच्छित्ता अणणुतावित्ता असन्निकायाओ वा सन्निकाए संकमन्ति सन्निकायाओ वा असन्निकायं संकमन्ति, सन्निकायाओ वा सनिकायं संकमन्ति असनिकायाओ वा असन्निकायं संकमन्ति । जे एए सन्नि वा असन्नि वा सव्वे ते मिच्छायारा निचं पसढविउवायचित्तदण्डा । तं जहापाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले । एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयपञ्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगन्तदण्डे एगन्तवाले एगन्तसुत्ते से बाले अवियारमणवयणकायवक्के सुविणमवि न पासइ पावे य से कम्मे कञ्जइ ॥ ४ ॥ . चोयए – से किं कुव्वं किं कारवं कहं संजयविरयप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे भवइ ? आचार्य आह-तत्थ खलु भगवया छजीवनिकायहेऊ पन्नत्ता, तं जहा-पुढवीकाइया जाव तसकाइया । से जहानामए मम अस्सायं दण्डेण वा अट्ठीण वा मुट्ठीण वा लेलण वा कवालेण वा आतोडिजमाणस्स वा जाव उवद्दविजमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा सव्वे सत्ता दण्डेण वा जाव कवालेण वा आतोडिजमाणे वा हम्ममाणे वा तजिजमाणे वा तालिजमाणे जाव उवदविजमाणे वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेन्ति । एवं नच्चा सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता न हन्तव्वा न उद्दवेयव्वा । एस धम्मे धुवे निइए सासए समिञ्च लोगं खेयन्नेहिं पवेइए । एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ जाव
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