Book Title: Suyagadam Part 01
Author(s): P L Vaidya
Publisher: Motilal Sheth

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Page 95
________________ 2. 2. 17. 25.] किरियाठाणज्झयणे इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ ॥ १६ ॥ से एगइओ परिसामझाओ उहित्ता अहमेयं हणामि ति कटु तित्तिरं वा वट्टगं वा लावगं वा कवोयगं वा कविञ्जलं वा अन्नयरं वा तसं वा पाणं हन्ता जाव उवक्खाइना भवइ । से एगइओ केणइ आयागणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावड्पुताण वा सयमेव अगणिकाएणं सस्साई झामेइ अन्नेण वि अगणिकाएगं सस्साई झामावेइ अगणिकाएणं सस्साई झामन्तं पि अनं समगुजागइ, इति से महया पावकम्भेहिं अत्तागं उवक्खाइना भवइ । से एगइओ केणइ आयागेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावड्पुताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण का गद्दभाग वा सयमेव घूराओ कप्पेड़ अनेण वि कप्पावेइ कप्पन्तं पि अन्नं समशुजाणइ, इति से महया जाव भवइ । से एगइओ केणइ आयाणे विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्ताण वा उसालाओ वा गोगसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कण्टकबोंदियाए पडिपहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झाने अन्नण वि झामावेइ झामन्तं पि अन्नं समणुजाणइ, इति से महया जाव भवः । से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्धे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुराण वा कुण्डलं वा मणि या मोतियं वा सयमेव अवहरड़ अन्नेण वि अवहरावेइ अवहरतं पि अन्नं समगुजाणइ इति से महया जाव भवइ । से एगइओ केणइ वि आयाणेणं विरुद्वे समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं सभणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दण्डगं वा भण्डगं वा मत्तगं वा लहिं वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मय वा छेयणगं वा चम्मकोसियं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ, इति से महया जाव उवक्खाइना भवइ ।। से एगइओ नो वितिगिञ्छ। तं जहा-गाहावईण वागाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं

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