________________ स्त्रीचरित्रः बुद्धिके प्रतापसे सुखपूर्वक साधन कर लेताहै. परन्तु जैसे सेनाहीन राजा अपना कार्य सुखसे साधन नहीं कर सकता, तैसेही विद्याहीन बुद्धि अपना पूर्ण प्रभाव नहीं दिखलासकती. इसकारण बुद्धिको निर्मल करने और बढाने के निमित्त विद्याही एक अनन्य उपाय है. - इस भूमण्डलमें हजारों वर्ष पहले जो जो बुद्धिमान् महात्मा वास करतेथे उनकी उक्ति उनका मनोगत भाव हमलोग विद्या के बलसे इस प्रकार जानसकतेहैं, कि जैसे पिताके अभिप्रायोंको पुत्र जानसकताहै. वस्तुतः इस जगतमें जिसने सम्यक् प्रकार विद्योपार्जन नहीं किया, - वह ज्ञानचक्षुसे हीन है, विद्याके सौन्दर्यको विद्वान ही देख सकता है. अविद्वान् नहीं देखसकता. जिसने विद्याकी ज्योति देखीहै वह अपने पुत्र कन्या और स्त्रियोंको अन्धकागवृत नयन रखनेकी इच्छा कभी न करे . बहुत लोग अपनी अपनी स्त्रियोंको नानाविधिरत्नालंकारोंसे भूषित करते हैं. परन्तु मुक्ति और ज्ञानका साधन विद्यारूप परमरत्नसे उनको वंचित रखते हैं। यह बहुतही अनुचित वर्ताव है. P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Gurg Aaradhak. Trus