Book Title: Sramana 2004 10
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ ६ : श्रमण, वर्ष ५५, अंक १०-१२/अक्टूबर-दिसम्बर २००४ अनुशासन के रूप में ही विनय को समझाया गया है। चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक में विनय का महत्त्व बताते हुए कहा गया है “जो विनय है वही ज्ञान है। और जो ज्ञान है वहीं विनय है, विनय से ज्ञान प्राप्त होता है, ज्ञान से विनय जाना जाता है।'' विनय का महत्त्व बताते हुए कहा है मनुष्य के सम्पूर्ण सदाचार का सारतत्त्व विनय में प्रतिष्ठित होना है, विनय रहित तो निर्ग्रन्थ साधु भी प्रशंसित नहीं होते हैं। आगे यही भी कहा गया है कि अल्प श्रुतज्ञान से सन्तुष्ट होकर जो व्यक्ति विनय और पाँच महाव्रतों से युक्त है, वह जितेन्द्रिय है, आराधक है। यहाँ किसी शिष्य की महानता उसके द्वारा अर्जित व्यापक ज्ञान पर निर्भर नहीं है, वरन् उसकी विनयशीलता पर आधारित है। गुरुजनों का तिरस्कार करने वाले विनय रहित शिष्य के लिए तो कहा है कि वह लोक में कीर्ति और यश को भी प्राप्त नहीं करता है। विद्या और गुरु का तिरस्कार करने वाले जो व्यक्ति मिथ्यात्त्व से युक्त होकर लोकेषणा में फंसे रहते हैं, ऐसे व्यक्तियों को ऋषि-घातक तक कहा है। विनय गुण के पश्चात् आचार्य गुण की चर्चा करते हुए चन्द्रवेध्यक के २१ से ३१ गाथा में कहा गया है कि जोआचार्य पृथ्वी के समान सहनशील, पर्वत की तरह अकम्पित, धर्म में स्थित, चंद्रमा की तरह सौम्य कांति वाले, समुद्र के समान गंभीर हेतु और कारणक ज्ञाताहोते हैं, उन आचार्यों की सभी प्रशंसा करते हैं। लौकिक, वैदिक, सामाजिक आदिशास्त्रों में जिनकी गति हो, जोस्वसमय और परसमयके जानकारहों, उनआचार्यों की सभी प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार आचार्य में छत्तीस गुण बतलाये गये हैं। भगवती-आराधना में भी आचार्यकोआचारवान्, आधारवान्, व्यवहारवान्, कर्ता तथारत्नत्रयकेलाभ और विनाश को दिखाने वाला, अपरित्रावी आदिगुणों से युक्त कहा गया है।११ भगवतीआराधना में आठज्ञानाचार, आठदर्शनाचार, बारह प्रकार केव्रत, पांचसमिति, तीन गुप्तिकीचर्चा है। १२ प्रवचन-सारोद्धार गाथा ३२ से ३५ में कहा गया है कि आचार्यों की भक्ति से जहां जीव इस लोक में कीर्ति और यश प्राप्त करता है, वहीं परलोक में विशुद्ध देवयोनि और धर्म में सर्वश्रेष्ठ बोधिप्राप्त करता है। त्यागऔर तपस्या से भी महत्त्वपूर्णगुरुवचनकापालनमानते हुये कहा गया है कि अनेक उपवास करते हुये भी जो गुरु के वचनों का पालन नहीं करता, वह अनंत संसारी होता है।१३ यदि किसीशिष्य में सैकड़ोंदूसरे गुण भले ही क्यों नहों, किन्तु यदिउसमें यह गुणनहीं हैं तोऐसे पुत्र को भी वाचना नहीं दी जा सकती है।चतुर्थ द्वार में विनय निग्रह गुणहै। यहां विनयनिग्रह काअर्थआज्ञा पालन याआचारनियमों से है। इसप्रकारबौद्ध त्रिपिटक में विनयपिटक एक ग्रन्थ है जहां विनम्रता के साथ आचार-नियमों का भी वर्णन है। विनयनिग्रह द्वार में कुछ गाथायें ऐसी हैं जो आचार के नियमों को सूचितकरती हैं। इस गाथाओं में विनयकाअर्थआचार नियमही प्रतिफलित है। इसीलिये विनयको मोक्ष का द्वार कहा गयाहै।सदाविनय का पालन करने की प्रेरणादीगई है तथा कहा है कि शास्त्रों काथोड़ा जानकार पुरुष भी विनय से कर्मों का क्षय करता है। इसे मोक्ष में ले जाने वाला शाश्वत गण कहा है।१५ साधुकीप्रशंसा के लिये विनयगुणजरूरी ही नहीं नितांत आवश्यक है।१६ पंचम द्वार में ज्ञान गुणकी महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है कि वे पुरुष धन्य हैं, जो जिनेन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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