Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
14 January-February - 2015 जो लीलई जणसहसाभिआण, पूरइ गुरु धारणगुणनिहाण । चउरासी कर निम्मविअलेख, जिणि रंजि कविअणगण असेष ||११|| पइठाविअ' ए वडगुणनिहाण, मुणे(णि)सुंदरसूरीसर पहाण | भविअणजणनयणाणंदचंद, जइचंदसूरि सूरिंदइंद ।।१२।। सिरिभुवणसुंदरगुरुभवणनाह, रयणायर जिम गुणमणिसणाह । जिणसुंदरगुरु निज्जिअअणंग, जस कंद(ठ)पीठि अग्यार अंग ।।१३।। जिणकित्तिसूरि गुरुगुणछतीस, धारइ ए सारइ जगजगीस । इंम पंचमेरू जिम सूरिपंच, पइ थप्पिअसई हथि जिअपवंच ।।१४।। पंचवि अन्नइ उवज्झायराय, जाणिज्जइं जगि तुह पयपसाय । पद पंच पवत्तणि तणां जाणि, संठविअ सामि आगमपमाणि ।।१५।। सिरिचंदगच्छ सुरसेलठाणि, चूला ज़िम गुणगणरयणखाणि । थप्पिअ महत्तरपद प्रमाणि, सिवचूला गणिए पई जि. जाणि ||१६ ।। पइ पंडिअ पदि जे ठविअ जाण, तिहिं अप्पिअ विज्झा(ज्जा) वद्धमाण । अन्नइ करि दिक्खिअ मुणिवराण, तिहिं जाणइं सामिअ कुण पमाण ।।१७।। प्रासाद पइट्ठिअ. पइं अनेकि(की), गणहर घण उच्छवसिउ विवेकि(की)। जिणबिंब पयट्ठा लख(क्ख)माण,संखा पुण जाणि कवण जाण ।।१८।। तप तपिअ छम्मासिअ पमाण, मुणिवरि तुह वारइ जुगपहाण | वनचारिअ रिषि हूअ सामि तुम्ह, उवएसहिं जाणिअ साहुधम्म ।।१९।। किअ ग्रंथ बहू बहुबुद्धि पुनि', चउसरणपइन्ना भास चुन्नि । अन्नइ जिअ जाणिअ अप्पबोह, पई निम्मिअ बहु बालावबोध ।।२०।। ते अप्पपक्खि-परपक्खि कज्जि, आवइं जिम वापी नयर मज्झि । । निक्कारणजगबंधव अपार, पइंनिम्मिअइमउवयारसार ।।२१।। जगगुरु जे जों णासई पिलाडि, परपक्खिअ जिहिं मोटी निलाडि | ते हू गुणरंजिअ तुम्हदेव, वंछई बहु दंसण पायसेव ।।२२।।।
१. संस्थापित, २. स्वयं, ३. एव, ४. वनमा फरनार, ५. शुभ, पुण्य?, ६. लांछन?
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