Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 79
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक नाम संपादक विवेचक (गुजराती) विवेचक (अंग्रेजी) प्रकाशक प्रकाशन वर्ष मूल्य भाषा पुस्तक समीक्षा डॉ. हेमन्तकुमार : हृदयप्रदीप षट्त्रिंशिका : मुनि श्री मृगेन्द्रविजयजी : चिरंतनाचार्य : मुनि श्री मृगेन्द्रविजयजी : सुश्री नीलेश्वरी कोठारी : जैन योग फाउन्डेशन : ईस्वी सन् २००० : ५०/: संस्कृत, गुजराती एवं अंग्रेजी जैनसाहित्य में आराधक भाव का निरूपण करनेवाले अनेक विशाल ग्रंथ उपलब्ध हैं. उन विशाल ग्रंथों के मध्य हृदयप्रदीप षटिंत्रशिका नामक प्रस्तुत ग्रंथ की लघुकाया में विषय की विशालता का संयोजन होने के कारण बड़े पैमाने पर मुमुक्षु, साधक, आराधक आदि इस ग्रंथ को हृदयंगम करते हैं तथा अनुप्रेक्षा आदि के लिए महत्तम उपयोग करते हैं. इसका प्रत्येक श्लोक अज्ञान के अन्धकार को हटाकर आत्मा में प्रज्ञा के प्रकाश को फैलानेवाला है. इस ग्रंथ की रचना करके कर्ता ने मुमुक्षुओं के मोक्षमार्ग को सुलभ बनाने का पूर्ण प्रयास किया है. प्रस्तुत ग्रंथ एक अति उपयोगी ग्रन्थ है, क्योंकि इसमें दुर्विचार एवं दुर्ध्यान को रोकने तथा मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होने हेतु बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया गया है. इस ग्रंथ को नित्यप्रति हृदयंगम करने से मन में दुर्विचार आदि का प्रादुर्भाव नहीं हो पाता है और जीवन को सुंदर अध्यात्म मार्ग की दिशा मिलती रहती है. मूल श्लोक कंठस्थ करने एवं नियमित भावन करने जैसे हैं. प्रस्तुत ग्रंथ में शब्द एवं भाषा की मर्यादा होते हुए भी यथाशक्य हृदय के अनेक भावों को प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया गया है. विद्वान पूज्य मुनिश्रीजी ने प्रत्येक श्लोक का प्रथमतः सामान्य गुजराती अर्थ करते हुए उन श्लोकों का अनेक शास्त्रों से विषयानुकूल उद्धरणों के साथ For Private and Personal Use Only

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