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SHRUTSAGAR
January-February - 2015 विस्तारपूर्वक विवेचन किया है. जो गुजराती भाषा-भाषी मुमुक्षुओं के लिये बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी. इसके साथ ही अंग्रेजी भाषा-भाषी मुमुक्षुओं के लिये यह ग्रंथ उपयोगी हो सके इस हेतु से सुश्री नीलेश्वरी कोठारी ने श्लोकों का अंग्रेजी भाषा में पद्यानुवाद व विवेचन लिखकर समाज पर उपकार ही किया है. इनके द्वारा प्रकाशन के अन्त में जैन पारिभाषिक शब्दों का अंग्रेजी शब्दार्थ दिया गया है, जो मुमुक्षुओं के लिये उपयोगी सिद्ध होगा.
इस लघु ग्रंथ में अनेक रहस्य छुपे हुए हैं. इसमें कोई विधि-विधान, क्रियाकलाप, साधना-आराधना या मत मतान्तर की बात नहीं है. है तो केवल आत्मा के सामर्थ्य को सूचित करने का रहस्य. आज के युग का मानव दैहिक-भौतिक सुखों की माया में फंसा हुआ है. भौतिक सुखों की चाहना एवं आधुनिकता की इस भाग-दौड़ में अपना मूल स्वभाव भूल बैठा है. इस संसार से बाहर भी कोई तत्त्व है, इसका भान भी नहीं हो पा रहा है. उसे यह पता ही नहीं चल रहा है कि आत्मा और मोक्ष नामक भी कोई तत्त्व है. ऐसे व्यक्तियों को इस ग्रंथ के पठनमनन से उनके हृदय में एक नई रोशनी का संचार होगा जो उसे वास्तविक सुख की राह बताएगा. इस लघु ग्रंथ की रचना सरल एवं रोचक भाषा-शैली में की गई है. गागर में सागर भरा हो ऐसी गंभीरता इसके प्रत्येक श्लोक में है, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं कही जाएगी.
पूज्य मुनि श्री मृगेन्द्रविजयजी ने गुजराती भाषा में एवं सुश्री नीलेश्वरी कोठारी ने अंग्रेजी में विस्तृत विवेचन कर गुजराती एवं अंग्रेजी भाषा-भाषी मुमुक्षुओं-वाचकों के लिए सरल एवं सुबोध बनाने का जो अनुग्रह किया है, वह सराहनीय एवं स्तुत्य कार्य है.
भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं श्रुतसेवा में समाज को इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करता हूँ.
पूज्य मुनिश्रीजी के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन.
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