Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
जनवरी-फरवरी- २०१५
गुरु म. ध्यान पार्यु पछी ते श्रावक आचार्यश्रीने वंदन कर्या विना ज बेठो. वीरचंद्रना आवा वर्त्तनथी क्रोधित थयेली देवीओए तेने अदृष्ट बंधनथी बांधी दीधो. त्यारे तेने पोतानी भूलनो पश्चात्ताप थयो अने गुरु म. नी तेणे माफी मांगी. पण दया आणी वीरचंद्रने बंधनथी मुक्त कराव्यो.
गुरु म.
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त्यारबाद तेणे पोताना आगमननुं प्रयोजन तेमज तक्षशिला संघनो विनंतिपत्र रजु कर्यो साथे त्यां पधारवा विनंती पण करी. त्यारे आचार्यश्रीए कह्युं के 'अहींना संघनी आज्ञा न होवाथी अमो त्यां नही आवी शकीए. पण त्यांना संघनुं कार्य जरी आपशुं.' पछी आचार्यश्रीए मंत्राधिराज गर्भित - 'श्रीशांतिस्तव' स्तोत्र बनावी आप्युं.
श्रावक वीरचंद्र आ स्तोत्र लई आनंदपूर्वक तक्षशिला आव्यो. श्रीसंघे मानदेवसूरिजीना कहेवा मुजब पाठ करीने मंत्रित जळनो बधे छंटकाव कर्यो. तेने परिणामे मरकीनो उपद्रव शांत थयो.
आजे आस्तव 'लघुशांति' तरीके प्रसिद्ध छे. आ सिवाय सूरिजीए व्यंतरना उपद्रवना निवारण माटे 'तिजयपहुत्तस्तोत्र' नी पण रचना करी छे आ वात 'जैन परंपरानो इतिहास' (रजी आवृत्ति) भा. १, पृ. २९८ पर नोंधायेली छे.
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योग्य शिष्यने पोतानी पाटे स्थापी प्रांते जिनकल्प जेवी संलेखना करी शुभध्यानमां काळधर्म पामी ते स्वर्गमां गया. अंचलगच्छनी बृहत्पट्टावलीमां आ. मानदेवसूरिजी म. वीर सं. ७३१ (वि.सं.२६१) पछी गिरनार उपर स्वर्गवासी थयानुं जणाव्युं छे. आचार्यश्रीना जीवन तेमज कार्यकाळ संदर्भे केटलाक भिन्नभिन्न मतो छे पण ते अहिं नोंध्या नथी.
शांतिस्तव (मूळ) सामान्य परिचय :
परंतु गुणविनयकृत प्रस्तुत टीका मात्र सत्तर गाथा प्रमाण उपलब्ध थाय छे. अने कर्तानुं नाम सत्तरमां पद्यमां ज वणायेलुं होवाथी एवं विचारी शकाय के छेल्ला २ पद्यो कदाच प्रक्षिप्त हशे अथवा अन्य २ पद्यो प्रसिद्ध होय तेमणे टीका न करी होय.
आ स्तवनी सत्तर गाथाओ 'गाहा' छंदमां छे. परंतु चौदमी गाथाना छंदनो निर्णय थई शकतो नथी. छेल्ली बे गाथाओ 'अनुष्टुप छंदमां छे. (प्रबोध टीका. भा. २, पृ. ३६२)
पूज्यश्री पोते ज जणावे छे तेम प्रस्तुत स्तव
१. पूर्वाचार्यो द्वारा दर्शित मंत्रपदथी युक्त छे.
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