Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 58 January-February - 2015 हलन्त-चिहन लेखन प्रक्रिया इस लिपि में हलन्त के लिए ( चिह्न प्रयुक्त हुआ है; जो किसी भी वर्ण की खडीपाई के नीचे की ओर किंचित् रिक्त स्थान छोडकर लगाने का विधान मिलता है। यह चिह्न पाण्डुलिपि पढते समय अथवा लिप्यन्तर करते समय दीर्घ 'ऊ'कार की मात्रा का भ्रम भी उत्पन्न करता है। उदाहरण स्वरूप यहाँ कुछ वर्गों में हलन्त चिह्न लगाकर इस प्रक्रिया को निम्नवत् समझा जा सकता है क । न । न । म कर नाम् - विदित हो कि 'क, त्, द्, श्, ह' आदि वर्गों में जब हलन्त के साथ 'र' लगाकर 'क्र, त्र, द्र, श्र, ह्र' लिखा जाता है तो इनके आकार में किंचित् परिवर्तन हो जाता है और निम्नवत् स्वरूप ग्रहण करते हैं क = क,क्र, क, द्र= ६,इ.5 श्रत ह्र = , . अवग्रह-चिहन लेखन प्रक्रिया इस लिपि में अवग्रह के लिए (E) चिह्न प्रयुक्त हुआ है; जो आधुनिक नागरी में किंचित् परिवर्तित होकर (s) रूप में प्रचलित है। यथा उदारदामनाध्मानमू विदित हो कि यह अवग्रहचिह्न जब 'भ' वर्ण के साथ जुडकर एक ही शिरोरेखा के नीचे प्रयुक्त होता है तो संयुक्ताक्षर 'ष्ण' पढा जाता है, और जब 'त्र' के साथ प्रयुक्त होता है तो 'ल्ल' पढा जाता है। यथा ष्ण = ब(कृष्ण = कृष) ल्ल = (उल्लास - बास) For Private and Personal Use Only

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