Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 56 SHRUTSAGAR January-February - 2015 * इसमें संयुक्त वर्ण-रचना की विलक्षण क्षमता है, जो इसके वैज्ञानिक सन्तुलन एवं पूर्णता का ज्वलन्त प्रमाण है। * इसमें रोमन लिपि की तरह छोटे-बडे (केपिटल-स्मॉल) वर्गों को अलग-अलग रूप में लिखने की उलझन नहीं रहती है। इस कारण लेखन, मुद्रण एवं टंकण आदि में इसके वर्ण (आदि-मध्य-अन्त) एक समान रहते हैं। * इस लिपि का उदय लगभग आठवीं नवमी शताब्दी में हुआ और कालान्तर में देश-काल-परिस्थिति अनुसार परिवर्तित होते-होते आज हमें आधुनिक देवनागरी लिपि के रूप में प्राप्त होती है। जिसे व्यापक प्रचार एवं विशिष्ट वैज्ञानिक विशेषताओं के कारण वर्तमान युग में हिंदुस्तान की राष्ट्रीय लिपि होने का गौरव प्राप्त है। * संसार की समस्त लिपियों में से अन्तरराष्ट्रीय लिपि बनने की सबसे अधिक योग्यता यदि किसी लिपि में है, तो वह लिपि नागरी ही है। नागरी लिपि की वर्णमाला . शिलाखण्ड, ताम्रपत्र, लोहपत्र, ताडपत्र, वस्त्र एवं हस्तनिर्मित कागजीय पाण्डुलिपियों आदि पर निबद्ध इस लिपि में प्रयुक्त स्वर एवं व्यंजन वर्णों की संरचना निम्नवत है स्वर वर्ण लेखन प्रक्रिया या ७,ज्ञईज me सु । एए3 विदित हो कि नागरी-लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में विसर्ग-चिह्न हेतु उपरोक्त अर्ध-पूर्णविरामवत् चिह्न प्रयुक्त हुआ है, जो लिप्यन्तर करते समय पूर्णविराम चिह्न का भ्रम उत्पन्न करता है। For Private and Personal Use Only

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