Book Title: Shrutsagar 2015 01 02 Volume 01 08 09
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 71 जनवरी-फरवरी - २०१५ नागरी-लिपिबद्ध शिलालेख (कच्छ-भुज संग्रहालय से साभार) (ब्रिटिश म्यूजियम-लंदन की वेबसाईट से साभार) HTRators भारतीय प्राचीन श्रुतपरंपरा को युग-युगान्तरों से निरन्तर जीवित एवं संरक्षित रखने मे इरा लिपि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इस लिपि में निबद्ध ग्रन्थराशि के आधार पर ही हमारी प्राचीन श्रुतसंपदा को पुनः प्रकाश में लाया जा सका है। भारतीय प्राचीन धरोहर-वैभव एवं राजे महाराजों के पुरातन इतिहास संकलन में भी नागरी लिपिवद्ध पुरालेखों की अहम् भूमिका रही है। आज इस लिपि का पठन-पाठन प्रायः लुप्त होता जा रहा है और इसके जाननेवाले विद्वान भी गिनेचुने ही रह गये हैं। लगभग नवमी से अठारहवीं शताब्दी के मध्य नागरी लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों एवं पुरालेखों को आसानी से पढ सकें या लिप्यन्तर कर सकें ऐसे विद्वान आज बहुत कम दिखाई देते हैं, जबकि इस लिपि में निबद्ध प्राचीन साहित्य हमें प्रचुर मात्रा में प्राप्त हो रहा है। इस लिपि का चलन तो विशेषकर उत्तर भारत में रहा लेकिन इसमें निबद्ध साहित्य हिंदुस्तान के समस्त भण्डारों में सर्वाधिक मात्रा में मिलता है। विदेशी ग्रन्थागारों For Private and Personal Use Only

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